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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२२ ) करपी वरनो बाप ॥ खावुं पदेयुं ने खरचं, ए ससराथी ते नहिं हनुं ॥ ३० ॥ संदेह जांगवा काजें वढू, कहे मुज मस्तक दुःखे बहु ॥ मांग मांग करे कंद, ससरे मेल्यां वैदज वृंद ॥ ३१ ॥ आण्यां औषध तिहां अनेक, करे पोटली केरा शेक ॥ शिर दुःखतुं न रहे जदा, ससरो वहूने पूढे तदा ॥ ३२ ॥ सदाये शिर दुःखे के आज, वह बोली मुख मूकी लाज ॥ क्यारें क्यारें शिर दुःखतु, मोती खरडे ते रहे तुं ॥ ३३ ॥ ससरो ताम खुशी त्यां हवा, मोती याल लागा जरडवा || त्यारें बहू कहे रधुं दुःखतुं, टल्युं शल्य जे मनमां हतुं ॥ ३४ ॥ पूब्धुं तेलनं टीपुं पड्युं, ते तुम पागरखे चोपड्युं ॥ हमणां मोती जरडो बहु, ए मुज संदेह टालो सहु ॥ ३५ ॥ सस रो कहे सांजल रे वहू, वशीकरण ए धननुं सहु ॥ कामें लाख सोवन खरचियें, कुमार्गे टीपुं नवि दीजी यें ॥ ३६ ॥ एणें वचनें वहू हर्ष अपार, ससरानी बुद्धि सुविचार || रुषन कहे हित शिक्षा एह, होय सुबुद्धि सुणे नर जेह ॥ ३७ ॥ सर्वगाथा || १०४१ ॥ || ढाल || हवे राणी पदमावती ॥ ए देशी ॥ ॥ जेह सुणे नर शुभ परें, वाधे बुद्धि श्रपार रे ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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