SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) तेम पृथ्वी करपी गण्यो ॥ २१ ॥कीडी माखी करपी तणुं, संच्युं बीजा खाता घj॥ तेमाटें माह्यो नर होय, त्रण वरगने साधे सोय ॥२॥ अर्थ का मनुं जो नहिं कर्म, तो आराधे एकलो धर्म ॥ पुण्य वश्नव पामे जदा, चार नाग धन करतो तदा ॥ ॥२३॥ एक नाग धन नोमें धरे, वणज नलो एक जागे करे ॥ एक नाग पुण्य गमें जोय, खरच करे एक नागें सोय ॥२॥ श्या माटें ए कडं में कथी, धन बातम कुण वहालां नथी॥ तोहे पुरुष धीरज आदरे, श्राठे गम नवि लेखु करे ॥ २५॥ सजन मित्र शुन्न स्त्रीने काम, निर्धन बांधव धर्मह गम ॥ विवाद व्यसनें रिपुखय जदा, न करे खरचनुं ले तदा ॥ २६ ॥ कुमार्गे जाती कोडी कही, हजार सोवन परें राखे सही॥रूडे ठगमें लख खरचे जोय, तिहां विचार करे नहिं सोय ॥२७॥ इसी धात होये जेहनी, लखमी न मूके केड तेहनी ॥ एक दृष्टांत हां आणियो, वसंत पुर सुबुझि वाणियो॥ ॥२०॥ सुत परण्यो धन खरची करी, श्राणी महो टानी दीकरी ॥ तेल तणुं टीपु एक पडे, ससरो पाग रखे चोपडे ॥३ए। वह चिंते मुफ लागुं पाप, दीसे For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy