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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाम, मांदो शेठ पड्यो तेणें गम ॥२॥ सगां लोक मिटयां तिहां बहु, पूजे धन किहां ताहरु सहु ॥ शेठ कहे धन गरो गर, मुफ विण ते नवि आवे बार ॥३॥ पण एक मित्र अडे मुफ गाम, रत्न आउ मूक्यां तेणें गम ॥ अपावजो ते सुतने सही, मरण लहे साह एहवं कही ॥४॥ लखत लेख श्राव्यो तस घरें, नारीपुत्र रुए बहु परें ॥ शोक नि वारी वांचे लेख, मित्र बोलाव्यो विनय विशेष ॥५॥ रत्न आठ माग्यां जेटले, बोल्यो नहीं मुखथी तेटले ॥ वढे पुत्रने जय देखडे, करी लांघणुं तीहां कणे पडे ॥ ६ ॥ पिता मित्र कहे था जो नवं, ताहारा बापने शुं धन हईं ॥श्म रत्न नाखंतो फस्यो, लख त साखीयो को नवि कस्यो ॥ ७ ॥ श्म वलगे नवि आपे कोय, गयो रायनी पासें सोय॥ करी वात मां मीने बहु, लखत साख विण वारे सहु ॥ ॥ धन खोइ श्राव्यो निज घरें, तेणें षनो वारे बहु परें ॥ लखत साख विण नवि दीजियें, मैत्री नीचशुं नवि कीजीयें ॥ ए ॥ सर्व गाथा ॥ २ ॥ ॥दोहा॥ ॥ काची ए केरी जली, पाको जलो न बील ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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