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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९४) नवि होये तुं जाण ॥ १५॥ तेणें भैत्री राख सहुशु, म म वढो वयरी साथ ॥ किश्युं काम किहां तुहिं थाये, चढे लूंगा हाथ ॥ १६ ॥ पंमित खलने करी आगल, आप साधे काज ॥ जीन दंतने लंठ जाणी, करे आगल आज ॥ १७ ॥ नांजे करडे दंत चूसे, चावी करी रस देह ॥ कठिण नरने करी आगल,खा द जिला लेह ॥१७॥ प्रांहि कंटाला विना वलि, न होय विषमुं काम ॥ तीखा कांटा क्षेत्र राखे,आराम घरने गाम ॥ १५ ॥ तेमाटे तुं जाणजे, वढवू नहिं कुण साथ ॥ व्यापार काजें न दीजीयें धन, मित्र केरे हाथ ॥२०॥ पाडोशीशु वढवू पडे जिम, तिम जाण वणजह मांहि ते माटे नवि कीजीयें, व्यापा र मैत्री ज्यांहि ॥२१॥ मित्रघरे धन कदा मूके, साक्षी राखे त्यांहि ॥ षन कहे हितशीख माटें, कथा आणी मांहि ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ए७३ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥शेठ धनेश्वर धननो धणी, रत्न आठ लीधांति हां गणी॥ एक कोडी सोवननुं सही, मित्र घरें मूक्यां गहगही ॥१॥ नारी पुत्र न जाणे कोय, सा खी लखत नहिं वली कोय ॥ मूकी तिहां गयो पर For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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