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( १११) घोल ॥ पुर्गति जाये श्रातमा, तेहथी रूडो खोल ॥१॥ चावो सत्यनां पानडां, मूकी असत्यनां पान॥ जे पांचे रूडो कह्यो, पाम्यो सकल निधान ॥२॥ धन्य लही सत्य आदरे, समराये परलोक॥ हितशि क्षा सुपुरुषने, कुपुरुष कहेवं फोक ॥३॥ ए४१॥
॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ वली हित शिक्षा नांखू एह, राखे सेवक सुंदर जेह ॥ नहीं वंचकने थिर गुणवंत, माह्यो मधुर वचन बलवंत ॥१॥ पवित्र अलोनी ने उद्यमी, खामीजक्त चालतो नमी॥श्रापधर्म समानी कह्यो, जलो नहिं घर बीजो रह्यो ॥२॥ निंदे धर्म जैननो जेह, श्राशातना जिननीज करेह ॥ साधपंथ वि खोडे सिरे, बेगे घणुं उगंबा करे ॥३॥ करे सोय संसारर्नु काम, तेहथी न लहे पुण्यनुं नाम ॥ श्राव क सेवक जगमांहे सार, जेह सुणावे धर्मविचार ॥ ॥ जीव अजीवनी वातो कहे, पुण्य पापना नेद पण लहे ॥ अनंतकाम अनदयनां पाप, शेठ तणे समजावे श्राप ॥ ५॥ बार व्रतनी वातो करे, सम कित नेद समजावे सीरे ॥ मिथ्यामतिथी ते फेरवे, शुद्ध धर्ममाहे मेलवे ॥ ६ ॥ पूजा पडिक्कमणानी
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