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(१०) जोजन अवदात, धन गांठे ने गुण विख्यात ॥ हुं काम पोतानुं पुण्य, एणे थानकें तुं करजे मौन ॥३॥ मरण म आपणो मरण प्रकाश, कहेतां अवगुण होशे तास ॥ कदाचित् को पूछे खप करी, कवण काम तुम कहे श्म फरी ॥ २४ ॥ गुर्वादिक पूरा जाय, सत्य वचन बोले तिण गय ॥ साचे सिकि होये जगमांह, सुण दृष्टांत कडं एक त्यांह ॥२५॥ दीक्षी नगरमांहे जाणीयो, मोहनसंघ वसे वाणी यो ॥ सत्यवादी तस नाम धराय, एक दिवस पूजे पादशाय ॥ २६ ॥ कहे वाणिक तुज केतुं धन्न, बोल्यो शेठ तिहां थश्ज प्रसन्न ॥ स्वामी ले जोश्ने कडं, अणप्रीव्युं सूधुं नवि लहुँ ॥॥ जोश ना मुंने सीधुं रहस्य, सोवन टका चोराशी सहस्स ॥म हारे एटलुं धन सही, वात पादशाह बागल कही ॥२॥ तव हरख्यो चिंते सुलतान, थोडं जाण्यु हतुं निधान ॥ एवं अव्य तो जाजो कह्यो, जगा ए सत्यवादी लह्यो ॥॥ हुई पादशा हरख अपा र, सोप्या तस सघला नंमार ॥ वाधी दोलत सुख पाम्यो घj, सहु आदरो सत्यवाद। पणुं ॥ ३० ॥ खंजनयरमां सोनी जीम, सत्य वचननो राखे नीम
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