________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(११) र ॥७॥ खातां मिल्या नवटका हेम, वहथर कहे हवे करजो एम ॥ करो काटढुं एहनुं तुमें, न्यायत को नवि जाये किमे ॥ ७ ॥ कहुं काटQ को नवि लेय, वदवचनें अहमां नाखेय॥मीन एक तणे मुख गयु, जाल्यो मत्स्य माडीयें प्रयुगए। लोह काटऱ्या दी जिसे, नामुंजईवंचाव्यु तिसे ॥ दीधु होलाक शेठने हाथ, कही वात निज वहूर साथ ॥१०॥ तहारुं वचन खलं मनमांहि, व्यवहार तणुं नवि जाये क्यांहि ॥ एह श्राशाता मनमां धरे, व्यवहार शुद्धि सदा आदरे ॥ ११ ॥ पाम्यो धन श्रावक ते थयो, कुटुंबें जिनमारग त्यां ग्रह्यो ॥राजमान्य थयो वाणियो, सत्यवादी जगमां जाणियो॥ १२ ॥ श्रा ज लगें तस गोखे जाण, होलासा कही ताणे वा हाण ॥ ते कारणे खोटें परिहरो, सत्यमार्ग सहुये श्रादरो ॥ १३ ॥ श्रावक जन एतां परिहरे, सामी साथ बल नवि करे ॥ विश्वासी देव गुरु वृद्ध बाल, जोह करंतां पातक जाल ॥ १४ ॥ तेहनी थापण नवि उलवे, तेह साथे जूतुं नवि लवे ॥ न करे वंच ना तिहां लगार, कर्मचमाल कह्या के चार ॥१५॥ कूडी साख दिये निशि दीस, घणो काल रहे जस
For Private and Personal Use Only