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चौथा व्याख्यान.
श्री ।
निश्चित कर के सिद्धार्थ राजा के पास स्वप्नशास्त्रों को उच्चारण करते हुए यों कहने लगेःकल्पसूत्र
स्वप्नों का फलादेस । हिन्दी
| हे राजन् ! अनुभव किया हुआ, सुना हुआ, देखा हुआ, प्रकृति के विकार से उत्पन्न हुआ, धर्मकार्य के प्रभाव अनुवाद UNIसे, पाप के उदय से, चिन्ता की परम्परा से, देवता के उपदेश से और स्वभाव से उत्पन्न हुआ, इस प्रकार मनुष्यों ॥४२॥
को नव तरह के स्वप्न आते हैं। पहेले ६ प्रकार के स्वप्नों में से देखा हुआ स्वप्न निरर्थक जाता है और बाद के तीन प्रकार के देखे हुए स्वप्न सार्थक होते हैं। रात्रि के चारों पहरों में देखा हुआ स्वप्न बारह, छ, तीन तथा एक मास में अनुक्रम से फलदायक होता है । रात्रि की अन्तिम दो घड़ियों में देखा हुआ स्वप्न दश दिन में ही फल देता है। तथा सूर्योदय के समय देखा हुआ स्वप्न निश्चय ही तुरन्त फलदायक होता है। दिन में देखी हुई स्वप्न की श्रेणी एवं आधि, व्याधि तथा मळमूत्र की हाजत से उत्पन्न हुआ स्वप्न | व्यर्थ समझना चाहिये । धर्म में अनुरक्त, समधातुवाला, स्थिर चित्तवाला, जितेन्द्रिय और दयालु मनुष्य प्रायः स्वप्न से अपने अर्थ को सिद्ध करता है। यदि खराब स्वप्न देखा हो तो किसी को सुनाना नहीं चाहिये। अच्छा स्वप्न गुरु आदि को सुनाना और यदि गुरु आदि का योग न बने तो गाय के कान में ही सुनाना उचित है। उत्तम स्वप्न देख कर बुद्धिवान् को चाहिये कि वह निद्रा न लेवे, सोजाने से उसका फल नष्ट होता है। यदि अधिक रात्रि हो तो प्रभु के गुनगान द्वारा जागृत रह कर शेष रात्रि व्यतीत करनी चाहिये ।
॥४२॥
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