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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
॥ १ ॥
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प्रथम व्याख्यान
मंगलाचरण
परम कल्याण के करनेवाले श्री जगदीश्वर अरिहन्त प्रभु को प्रणाम करके मैं बालबुद्धिवालों को उपकार करनेवाली ऐसी सुबोधिका नामकी कल्पसूत्र की टीका करता हूँ १ । इस कल्पसूत्र पर निपुण बुद्धिवाले पुरुषों के लिए यद्यपि बहुतसी टीकायें हैं तथापि अल्पबुद्धिवाले मनुष्यों को बोध प्राप्त हो इस हेतु से यह टीका करने में मेरा प्रयत्न सफल है २ । यद्यपि सूर्य की किरणें सब मनुष्यों को वस्तु का बोध करनेवाली होती हैं। तथापि भोंरे में रहे हुए मनुष्यों को तो तत्काल दीपिका ही उपकार करती है ३ । इस टीका में विशेष अर्थ नहीं किया, युक्तियाँ नहीं बतलाई और पद्य पाण्डित्य भी नहीं दिखलाया गया है परन्तु सिर्फ बालबुद्धि अभ्यासियों को बोध करनेवाली अर्थ व्याख्या ही की है ४ । यद्यपि मैं अल्प बुद्धिवाला होकर यह टीका रचता हूं तथापि सत्पुरुषों का उपहासपात्र नहीं बनूंगा क्योंकि उन्हीं सत्पुरुषों का यह उपदेश है कि सब मनुष्यों को शुभ कार्य में यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिये ५ ।
पूर्वकाल में नवकल्प विहार करने के क्रम से प्राप्त हुए योग्य क्षेत्र में और आजकल परंपरासे गुरु की आज्ञावाले क्षेत्र में चातुर्मास रहे हुए साधु कल्याण के निमित्त आनन्दपुर में सभा समक्ष बाँचे बाद संघ के समक्ष
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प्रथम व्याख्यान.
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