SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir तीसरा व्याख्यान. समन श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद ॥३६॥ रत्नजडित सुवर्ण के १००८ स्थंभोंवाला आकाश में दीपक एवं उदय होते हुए सूर्य के सदृश देदीप्यमान है। उसमें अनेक प्रकार के रंगविरंगे पंचवर्णीय सुगन्धित पुष्पों की मालायें लटक रही हैं । तथा मोतियों की मालाओं से उसकी कान्ति में अधिक शोभा बढ़ रही है। उस दिव्य विमान की दीवारों में मृग, वृक्ष, वृषभ, अश्व, गज, मगर मच्छ, भारंड, वरुड़, मयूर, सर्प, किन्नर, कस्तूरिया मृग, अष्टापद, शार्दूलसिंह, वनलता, पद्मलता इत्यादि के रंगविरंगे सुन्दर चित्र लिखे हुए हैं। उस विमान में जो विविध प्रकार के नाटक हो रहे हैं उनमें बजनेवाले अनेक बाजों तथा महामेघ के शब्द सदृश गंभीर देवदुन्दुभी का मनोहर और सर्व लोकको पूर्ण करनेवाला शब्द हो रहा है। देवों के योग्य पुण्य कर्मफल सुखदायक वह विमान कृष्णागुरु, कुन्दरूक, सेलारस | आदि दशांग धूप से सुगन्धमय तथा उद्योतवाला है। १२ । तेरहवें स्वप्न में त्रिशलादेवीने उत्तम रत्नों को राशिसमूह को देखा-उस रत्नों के समूह में पुलाक जाति के वज-हीरा की जाति के, नीलम, सस्यक, मरकत, इंद्रनील, करकेतन, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, प्रवाल, स्फटिक, सौगन्धिक, हंसगर्म, अंजन, चंद्रकांतमणि, माणिक्य, सासक, पन्ना आदि अनेक जाति के रत्न संचित हैं । वह रत्नों का पुंज मेरु के समान ऊँचा और अपने देदीप्यमान तेजसे आकाश को भी प्रकाशमान कर रहा है ।१३। __ चौदहवें स्वप्न में त्रिशला माताने विस्तीर्ण, उज्वल, निर्मल, पीतरक्तवर्णवाली तथा मधु घीसे सिंचित धम् | २ शन्द करती हुई जाज्वल्यमान् निधूम अग्निशिखा को देखा-वह अग्निशिखा अनेक छोटी बड़ी ज्वालाओं से For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy