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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विशाल जलाशय है। उसके मध्यमें एक कमल है जो जल से दो कोश ऊँचा, एक योजन चौड़ा और एक योजन लम्बा है। उसकी नील रत्नमय दश योजन की नाल, वज्रमय मूल, रिष्ट रत्नमय कंद, लाल कनकमय बाह्य पत्रे, सुवर्णमय बीच के पत्रे, दो कोश चौड़ी, दो कोश लम्बी और एक कोश ऊँची सुवर्णमय उसकी कर्णिका है । रक्त सुवर्णमय उसकी केशरा है । उसके मध्यमें आध कोश चौड़ा, एक कोश लम्बा और कुछ कम एक | योजन ऊँचा लक्ष्मीदेवी का भवन है। उसके पाँचसो धनुष्य ऊँचाई और ढाईसौ धनुष्य चौड़ाई वाले पूर्व, दक्षिण एवं उत्तर दिशामें तीन द्वार हैं। उस भवन के मध्य में ढाईसौ धनुष्य के प्रमाणवाली रत्नमय वेदिका है जिस पर श्रीदेवी के योग्य सुन्दर शय्या है। पूर्वोक्त मुख्य कमल के चारों ओर श्रीदेवी के आभूषणरूप वलयाकारमें मूल कमल से आधे २ प्रमाणवाले एकसौ आठ कमल हैं। सर्व वलयों में इसी प्रकार क्रमसे अर्ध २ प्रमाण समझना चाहिये । यह प्रथम वलय पूर्ण हुआ। दूसरे वलय में वायव्य, ईशान जौर उत्तर दिशा में चार हजार सामानिक देवों के चार हजार कमल हैं। पूर्व दिशा में चार महत्तराओं के चार कमल हैं। अग्नि दिशा में गुरु स्थानीय अभ्यन्तर पर्षदा के देवों के आठ हजार कमल हैं। दक्षिण दिशा में मित्र स्थानीय मध्यम पर्षदा के देवों के दश हजार कमल हैं। नैऋत दिशा में किंकर स्थानीय बाह्य पर्षदा के देवों के बारह हजार कमल हैं। पश्चिम दिशा में हाथी, अश्व, स्थ, पैदल, मैंसे, गन्धर्व और नाट्यरूप सात सेनापतियों के सात कमल हैं। इस प्रकार यह दूसरा वलय पूर्ण हुआ। For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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