________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
॥ २९ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
धारिणी देवी की कुक्षिमें चौरासी लाख पूर्व की आयुवाला प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती हुआ। पोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा लेकर एक करोड वर्ष तक दीक्षापर्याय पाल चौबीसवें भव में महाशुक्र देवलोक में देव हुआ । वहाँ से पच्चीसवें भव में इस भरत क्षेत्र की छत्रिका नगरी में जितशत्रु राजा की भद्रा नामा रानी की कुक्षि से पच्चीस लाख वर्ष की आयुवाला नन्दन नामक पुत्र हुआ । पोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण कर जीवत पर्यन्त मासक्षमण की तपस्या कर के बीस स्थानक की आराधना द्वारा तीर्थंकर नामकर्म निकाचित कर और एक लाख वर्ष तक चारित्र पर्याय पाल कर मासिक संलेखना से मृत्यु पाकर छब्बीसवें भव में प्राणत कल्प में पुष्पोत्तरावतंसक नामा विमान में बीस सागरोपम की स्थितिवाला देव हुआ । वहाँ से चलकर पूर्व में मरीचि के भव में उपार्जन किये और भोगने में कुछ शेष रहे हुए नीच गोत्र कर्म के प्रभाव से सताईसवें भव में ब्राह्मणकुण्ड ग्राम नगरमें ऋषभदत्त ब्राह्मण की देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में प्रभु अवतरे हैं। इसी कारण इंद्र यह विचार करता है कि इस प्रकार नीच गोत्र कर्म के उदय से अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेवादि का अवतरण तो तुच्छादि नीच गोत्र में हुआ है, होता है और होगा अर्थात् उन हलके कुलों में पूर्वोक्त उत्तम पुरुष भूत, वर्तमान और भविष्य काल में माता के गर्भ में आये और आयेंगे परन्तु उन कुलों में योनि द्वारा उनका जन्म न हुआ, न होता है और न कभी होगा । अब श्रमण भगवान् महावीर प्रभु जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र में, ब्राह्मण कुण्ड ग्राम नगर में ऋषभदत्त ब्राह्मण की स्त्री देवान्दा की कुक्षि में गर्भतया अवतरे हैं । इस लिए देवताओं के राजा शक्रेंद्र
For Private And Personal
दूसरा व्याख्यान.
॥ २९ ॥