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हैं ? भगवानने कहा- यह जिन नहीं है, परन्तु शाखण ग्रामनिवासी मंखली और सुभद्रा से अधिक गायोंवाली एक ब्राह्मणी की गोशाल में पैदा होने के कारण 'गोशाल' नामधारी एक हमारा ही शिष्य है । वह हमारे ही पास कुछ ज्ञान प्राप्त कर के मिथ्या मान बडाई के लिए व्यर्थ ही अपने आप को जिनेश्वर प्रसिद्ध करता है । सर्वज्ञ देव का यह वचन सर्वत्र फैल गया। गोशाला इस बात को सुन कर बड़ा कुपित हुआ । उस समय गोचरी के लिये शहर में गये हुए आनन्द नामक भगवान के शिष्य को देख कर गोशाला बोला कि हे आनन्द ! एक दृष्टान्त सुनता जा । कितनेएक व्यापारी अनेक प्रकार के क्रयाणे गाड़ियों में भर कर धन कमाने के लिए परदेश जाने को घर से निकले । मार्ग में उन्होंने एक अटवी में प्रवेश किया। वहाँ उन्हें प्यास लगी, परन्तु खोज करने पर भी उन्हें वहाँ पर कहीं जलाशय न मिला । पानी की खोज करते हुए उन्होंने चार बाँबी देखीं। एक बाँबी को फोडने पर उसमें से खूब पानी निकला। उन सबने अपनी प्यास बुझाई और मार्ग के लिए जलपात्र भर लिए। उनमें से एक वृद्ध वणिक बोला कि भाईयो ! हमारा काम हो गया चलो, अब दूसरी बाँबीं (शिखर) फोड़ने की आवश्यकता नहीं है। निषेध करने पर भी उन्होंने दूसरी बाँबी (शिखर) फोड़ डाली। उसमें से उन्हें बहुत सुवर्णप्राप्त हुआ। वृद्ध के निवारण करने पर फिर उन्होंने तीसरा शिखर फोड़ा, उसमें से बहुत रत्न निकले। उस वृद्ध वणिक के रोकने पर ध्यान न दे कर उन्होंने चोथे शिखर को भी फोड़ डाला। उसमें से एक दृष्टिविष सर्प निकला । उसने अपनी क्रूर दृष्टिद्वारा सब को मौत के घाट उतार दिया। जो उनमें हितोपदेशक वृद्ध था
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