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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भी कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ १९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir के समान सर्व वस्तुसमूह के प्रकाशक होने से लोक में उद्योत करनेवाले । भय से रहित - निडर करनेवाले । वे भय सात प्रकार के हैं यथा १ - मनुष्य को मनुष्य से भय वह इस लोक संबन्धी भय । २- मनुष्य को देवादिक का भय सो परलोक भय । ३-धनादि के हर लेने का भय सो आदान मय । ४- किसी निमित्त विना ही जो बाह्य भय सो अकस्माद् भय । ५ - आजीविका का भय। ६-मरण भय और ७ - अपयश भय । उक्त सात प्रकार के भय से विमुक्त करनेवाले | नेत्रों के समान श्रुतज्ञान के देनेवाले, सम्यग् दर्शनादि मोक्षमार्ग के देनेवाले । जैसे कि कईएक मनुष्य कहीं मुसाफरी में जा रहे थे, रास्ते में चोरोंने उनका धन लूट कर आँखों पर पट्टी बांध कर उन्हें उलटे रास्ते चढ़ा दिया, इतने में किसी बलवान हितकारी मनुष्यने वहाँ आकर चोरों से उनका धन वापिस दिला कर और आँखो से पट्टी खोल कर उन्हें सीधे रास्ते पर चढ़ा दिया। वैसे ही प्रभु भी काम-क्रोधादिरूप चोरों से धर्मधन लुटे हुए और मिथ्यात्व पट्टी से आच्छादित विवेकरूप नेत्रोंवाले मनुष्यों को श्रुतज्ञान, धर्मधन दे मुक्तिमार्ग पर चढ़ा कर उपकारी होते हैं। संसार में भयभीत मनुष्यों को शरण देनेवाले । मृत्यु का अभावरूप जीवन देनेवाले, बोधि अर्थात् सम्यक्त्व का प्रकाश करनेवाले, चारित्ररूप धर्म की ज्योति दिखानेवाले। धर्म का उपदेश देनेवाले । धर्म नायक स्वामी, धर्मके सारथी । जैसे- सारथी उन्मार्ग में जाते हुए रथ को सन्मार्ग में लाता है वैसे ही प्रभु भी उन्मार्ग में गये मनुष्य को धर्ममार्ग में लाकर स्थिर करते हैं। अब इस पर मेघकुमार का दृष्टान्त कहते हैं । For Private And Personal प्रथम व्याख्यान. ॥ १९ ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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