SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मम्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मणायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, दीवोत्ताणं, सरणंगईपईट्ठा अप्पडिहयवरणाण सणधराणं, पियट्टछउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिण्णाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं, सव्वण्णूणं, सव्वदरिसीण, सिवमयलमरुअमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइणामधेयं, ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअभयाणं ॥ तीन भुवन में पूजने योग्य या कर्मरूप शत्रु को नाश करनेवाले अथवा कर्मरूप बीज का अभाव करनेवाले श्री अरिहन्त प्रभु को नमस्कार हो । ज्ञानादि गुण युक्त अपने अपने तीर्थ की अपेक्षा आदि के करनेवाले, तीर्थ अर्थात् श्री चतुर्विध संघ या आद्य गणधर उसे करनेवाले, स्वयं बोध पानेवाले, अनन्त गुणसमूह के धारक होने से सर्व पुरुषों में उत्तमता धारण करनेवाले, कर्मरूप शत्रुओं को नष्ट करने में सिंह के समान, पुरुषों में पुंडरीककमल के समान प्रधान अर्थात् जैसे कमल कीचड़ में ऊगता है, जल में बढ़ता है और कीचड़ एवं जल को छोड़ कर ऊपर रहता है वैसे ही भगवान् भी कर्मरूप कीचड़ से पैदा हुए, भोगरूप जल से बढ़े और | कर्म एवं भोग का त्याग कर पृथक रहते हैं। पुरुषों में गंधहस्ती के समान-जैसे गंध हाथी की सुगंध से अन्य हाथी भाग जाते हैं वैसे ही जहाँ भगवन्त विचरते हैं वहाँ से दुर्भिक्षादिरूप हाथी भाग जाते हैं। अर्थात् प्रभु के प्रभाव से उस देश में उपद्रव नहीं होते । 'भव्य प्राणियों के समूह में चौतीस अतिशयों से युक्त होने के कारण उत्तम' लोक के नाथ-योग क्षेम करनेवाले अर्थात् अप्राप्त ज्ञानादि गुण प्राप्त करानेवाले। लोगहियाणं सर्व प्राणियों के हितकारी। लोक में रहे अज्ञानान्धकार या मिथ्यात्वांधकार को नाश करने में दीपक के समान । सूर्य For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy