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प्रथम व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद।
॥१५॥
दक्ष और सदैव सरलता से वर्तनेवाला मनुष्य मानव योनि में से आया है और फिर भी वह मनुष्य योनि में ही जायगा-यह समजना योग्य है । कपट, लोभ, अति भूख, आलस्य बहुत आहार करना-इत्यादि चेष्टाओं से मनुष्य सूचित करता है कि वह पशु योनि से आया है और पशु योनि में ही जायगा । जो मनुष्य अति कामी, स्वजनो का द्वेषी, सदैव दुर्वचन बोलनेवाला और मूर्खजनों की संगत करनेवाला होता है वह अपने नरक के आगमन को और नरक में ही जाने को सूचित करता है। पुरुषों के शरीर में यदि दक्षिण भाग में आवर्त हो तो वह श्रेष्ठ फलदायक होता है, बाँये हो तो निन्दनीय समझना चाहिए और यदि अन्य किसी भाग में हो तो वह मध्यम फल देता हैं। जिस मनुष्य के हाथ में बिलकुल कम रेखा हों या एकदम अधिक रेखायें हों तो वह निःसंदेह दुःखी होता है। जिस
पुरुष की अनामिका अर्थात् अन्तिम अंगुली से पहली अंगुली की अन्तिम रेखा से कनिष्ठा अंगुली यदि कुछ अधिक | हो तो उस पुरुष को धन की वृद्धि होती है और मौसाल पक्ष अधिक होता है। मणिबन्ध से जो रेखा चलती है
वह पिता की रेखा कहलाती है और करभ से कनिष्ठा अंगुली के मूल की ओर से जो दो रेखाएं चलती हैं वे | वैभव और आयु की होती हैं । वे तीनों ही रेखायें तर्जनी अंगुली और अंगूठे के बीच जा मिलती हैं। जिसके
ये तीनों रेखायें संपूर्ण और दोपवर्जित हों वह मनुष्य गोत्र, कुल, धन, धान्य और आयुष्य का संपूर्ण सुख भोगता है । आयु की रेखा जितनी अंगुलीओं को उलंघन कर आगे चली जाय, उतने ही पच्चीस पच्चीस वर्ष की आयु अधिक समझना चाहिये। यदि दाहिने हाथ के अंगूठे में यव का चिह्न हो तो विद्या, वैभव और ख्याति
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