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दर्पण, बैल, पताका, लक्ष्मी का अभिषेक, उत्तम माला और मयूर-मोर—ये बत्तीस चिह जिस पुण्यवान के शरीर में होते हैं वह बत्तीस लक्षणा पुरुष कहलाता है। इन लक्षणवाले मनुष्य के सात लक्षण लाल हों तो श्रेष्ठ होते है,-नाखून, हाथ, पैर, जीभ, होठ, तालुवा, और नेत्रों के कोण, ये लाल अच्छे होते हैं । कक्षा, हृदय, गर्दन, नासिका, नाखून और मुख-उन्नत अच्छे होते हैं । दाँत, चमडी, केश, अंगुलियों के पर्व और नाखूनये पाँच सूक्ष्म अर्थात् बारीक अच्छे होते हैं। नेत्र, हृदय, नासिका, हनु-ठोडी और भुजा, ये पाँच लंबे श्रेष्ठ होते हैं। ललाट, छाती और मुख ये तीन विशाल अच्छे होते हैं। गरदन, जंघा और पुरुषचिह्न ये तीन लघु अच्छे होते हैं। सत्व, खर और नाभि ये तीन गंभीर अच्छे होते हैं। ये भी बत्तीस लक्षण कहलाते हैं। शरीर का अर्ध भाग मुख है या शरीर का सर्वस्व मुख गिना जाता है, उससे भी नासिका श्रेष्ठ है नासिका से नेत्र श्रेष्ठ हैं। जैसे नेत्र होते हैं वैसा ही उस मनुष्य का शील होता है। जैसी नासिका होती है वैसी ही उसके हृदय की
सरलता होती है। जैसी रूपाकृति होती है वैसा ही उसके पास द्रव्य समझना और जैसा शील होता है वैसे । ही गुण समझना। जो मनुष्य अति ठिंगना होता है, अति लंबा होता है, अति मोटा होता है, अति कश
अति पतला होता है अति काला होता है और बहुत गोरा होता है, इन छ: प्रकार के मनुष्यो में सत्व होता है। सद्धर्मी, रुपवान्, निरोगी श्रेष्ठ स्वप्न देखनेवाला, श्रेष्ठ नीतिवान् और कविता रचनेवाला मनुष्य स्वर्ग से आया है और स्वर्ग में ही जायगा-यह सूचित करता है । दंभरहित, दयालु, दानी, इंद्रियों को दमन करनेवाला,
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