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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir से मास में करना? इस विषय में प्रथम मास को न गिन कर दूसरे में करना ऐसा भली प्रकार विचार कर, अचेतन वनस्पतियाँ भी अधिक मास को प्रमाण नहीं करतीं, जिसे अधिक मास को छोड़ कर वे दूसरे मास में पुष्पित होती हैं। इसके लिए आवश्यकनियुक्ति में कहा है कि 'जइफुल्ला कणियारा' चूअगणा अहिमासयंमि घुट्टमि । तुह न खमं फुल्लेउ, जइ पचंता करिंति उमराई ॥१॥ भावार्थ-हे आम्रवृक्ष! अधिक मास की उद्घोषणा होने पर कदाचित् कनियर के फूलतो फूलें परन्तु तुझे फूलना नहीं घटता, क्यों कि इससे तुच्छ जाति के वृक्ष तेरी हँसी करेंगे। तथा कोई अभिवड्डियंमि वीसा इअरेसु सवीसइ मासे' इस वचनद्वारा अधिक मास हो तब वीस दीन पर ही लोच आदि कृत्य सहित पर्युषणा करते हैं, यह भी अयुक्त है। क्यों कि 'अभिवड्डियंमि वीसा' यह वचन गृहिज्ञातपर्यषणा मात्र की अपेक्षा से है। अन्यथा 'आसाढमासिए पनोसर्विति एस उस्सगो, सेसकालं पज्जोसविताणं अववाउत्ति' याने | आषाढ मासमें पर्युषणा करना यह उत्सर्ग है और शेष काल में पर्युषणा करना यह अपवाद है ऐसा श्रीनिशीथचूर्णि के दशम उद्देशे का वचन होने से आषाढ पूर्णिमा को ही लोचादि कृत्य सहित पर्युषणा करनी चाहिये । "यह चातुर्मास रहने की अपेक्षा से कथन किया गया है परन्तु कृत्यविशिष्ट पर्युषणा करने के लिए नहीं इसी कारण ऐसा नहीं किया जाता"। कल्प में कही हुई द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप स्थापना इस प्रकार है-द्रव्य स्थापना-तृण, डगल, छार, For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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