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भी
प्रथम व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद ।
॥११॥
ऐसे छोटे बालकने अट्ठमतप किस तरह किया ? धरणेंद्र बोला-राजन् ! पूर्वभव में यह बालक एक बनिये का पुत्र था बालकपन में ही इसकी माता की मृत्यु हो गई थी, इससे इसकी सौतेली माता इसे अत्यंत सताया करती थी। इसने दु:खित हो अपनी सौतेली माता का दुःख अपने मित्र के सामने कहा । मित्र बोला कि भाई ! तुमने पूर्वमव में कुछ तप नहीं किया इसी कारण तुम्हारा पराभव होता है । उस दिन से वह कुछ तप करने लगा । अबके मैं आगामी पर्युषणा में अट्ठम तप करूंगा ऐसा निश्चय करके वह एक दिन घास की कुटिया में सो गया। अवसर देख कर उसकी सौतेली माताने उस कुटिया में एक अग्नि की चिनगारी डाल दी, जरासी देर में कुटिया जल कर राख हो गई। वह भी जल मरा और उस अट्ठम तप के ध्यान से वह इस श्रीकान्त शेठ का पुत्र हुआ है। इस कारण इसने पूर्वभव में चिन्तन किया अट्ठम तप अभी बाल्यावस्था में पूर्ण किया | है। यह महापुरुष लघुकर्मी होने से इसी भव में मोक्ष प्राप्त करेगा इसे यत्नपूर्वक पालन करने योग्य है। इससे तुम्हें भी बड़ा लाभ होगा। यों कह कर धरणेन्द्र उसके गले में हार डाल कर स्वस्थान पर चला गया।
फिर उसके स्वजनोंने श्रीकान्त सेठ का मृतकार्य किया और उसके पुत्र का नाम ' नागकेतु' रक्खा । अनुक्रम से वह बाल्यावस्था से ही जितेंद्रिय परम श्रावक बना। एक दिन विजयसेन राजाने किसीएक मनुष्य को चोर न होने पर भी चोरी के कलंक से मार डाला था। वह मर कर व्यन्तर देव हुआ और पूर्व वैर से उसने सारे नगर को नष्ट कर डालने के लिए आकाश में एक बड़ी विशाल शिला रची । राजा को लात मार
॥११॥
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