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परन्तु योग्य भिक्षा न मिलने पर भी अदीन मनवाले प्रभु विचरते हुए कुरुदेश के हस्तिनापुर नगर में पधारे।। वहां पर बाहुबलि के पुत्र सोमप्रभ का पुत्र श्रेयांस नामक युवराज था। उस श्रेयांसने रात्रि में ऐसा स्वप्न देखा कि-" मैंने श्यामवर्ण के मेरु को अमृत के कलशों से सिंचित किया जिससे वह अत्यन्त शोभने लगा।" वहां के सुबुद्धि नामक नगरसेठने भी ऐसा स्वप्न देखा "सूर्यमंडल से खिसक पड़ी हुई हजार किरणों को श्रेयांसने फिर से वहां स्थापित कर दिया है इससे वह सूर्य शोमने लगा है।" वहां के राजा सोमप्रभने मी उस रात को ऐसा स्वप्न देखा कि "एक महापुरुष शत्रु सैन्य के साथ लड़ रहा है वह श्रेयांस की सहायता से विजयी हुआ।" उन तीनोंसे सुबह राजसभा में एकत्रित होकर परस्पर अपने २ स्वप्न कहे । उन पर से आज श्रेयांस को कोई बड़ा लाभ होना चाहिये, राजाने यह निर्णय कर सभा विसर्जन की। श्रेयांसकुमार अपने घर जाकर बारी में बैठा ही था कि इतने में ही "प्रभु कुछ भी नहीं लेते २" लोगों को इस प्रकार का इते सुना। उसने उधर देखा तो प्रभु पर दृष्टि पड़ी। प्रभु को देखते ही उसके मन में तुरन्त यह विचार उत्पन्न हुआ कि “ मैंने पहले ऐसा वेश कहीं पर देखा है" इस तरह इहापोह करते हुए श्रेयांस को जातिस्मरण ज्ञान पैदा हुआ । अब उसने स्वयं जान लिया कि "मैं तो पूर्वभव में प्रभु का सारथी( रथवान् ) था और प्रभु के साथ मैंने दीक्षा ली थी। उस वक्त श्री वज्रसेन प्रभुने कहा था कि-यह वज्रनाभ भरतक्षेत्र में पहला तीर्थकर होगा' वही ये प्रभु हैं। इधर उसी समय कोई एक मनुष्य श्रेयांस के वहां इक्षुरस के घडे भर कर भेट देने आय। था।
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