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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी मनुवाद | ॥ १२० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ८४, काश्यप ८५, बल ८६, वीर ८७, शुभमति ८८, सुमति ८९, पद्मनाभ ९०, सिंह ९१, सुजाति ९२, संजय ९३, सुनाम ९४, नरदेव ९५, चित्तहर ९६, सुस्वर ९७, दृढरथ ९८, दीर्घबाहु ९९, और प्रभंजन १०० । अब राज्य या देशों के नाम निम्न प्रकार जानना चाहिये । अंग, बंग, कलिंग, गौड़, चौड़, कर्नाट, लाट, सौराष्ट्र, काश्मीर, सौभीर, आभीर, चीन, महाचीन, गुरजर, बंगाल, श्रीमाल, नेपाल, जहाल, कौशल, मालव, सिंहल, मरुस्थल इत्यादि । प्रभु का दीक्षा कल्याणक अब जीत कल्पवाले लोकान्तिक देवोंने इष्टवाणी द्वारा प्रभु को प्रार्थना करने पर, दीक्षा समय जान कर शेष धन गोत्रीयों को बाँट दिया । वहाँ तक सब कुछ पूर्ववत् समझना चाहिये । जो ग्रीष्म काल का पहला मास था, पहला पक्ष था, चैत्र के कृष्णपक्ष में चैत्र वदि अष्टमी के दिन, दिन के पिछले पहर सुदर्शना नामा शिबिका में बैठ कर जिनके आगे देव, मनुष्यों तथा असुरों का समूह चल रहा है ऐसे प्रभु विनीता नगरी के मध्य भाग से निकल कर सिद्धार्थवन नामक उद्यान में जहाँ अशोक नामा वृक्ष है वहाँ आये । शिविका से उतर अशोक वृक्ष के नीचे स्वयं चार मुष्टि लोच करते हैं। चार मुष्टि लोच करने के बाद एक मुष्टि केश जब बाकी रहे तब वह भगवान् के सुवर्ण वर्णे शरीर पर इधर उधर चिकुराते हुए ऐसे सुंदर मालूम होने लगे कि जैसे सोने के कलश पर नील कमलों की माला हो । उसकी सुंदरता को देख कर इंद्र महाराजने प्रभु से प्रार्थना की कि इतने केश For Private And Personal सातवां व्याख्यान. ॥ १२० ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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