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क
प्रथम व्याख्यान.
कल्पसूत्र
हिन्दी अनुवाद ।
॥९
॥
| एकाग्र चित्त से इस कल्पसूत्र को इक्कीस दफा सुनता है हे गौतम ! वह इस संसारसागर से तर जाता | है, इस प्रकार श्रीकल्पसूत्र की महिमा सुनकर कष्ट और धन व्यय करने से साध्य तप, पूजा और प्रभावना आदि धर्मकृत्यों में आलस्य न करना चाहिये । क्योंकि उपरोक्त तपस्यादि सर्व सामग्री सहित ही कल्पसूत्र का सुनना वांछित फलदायक होता है। जैसे बोया हुआ बीज वृष्टि, वायु आदि सामग्री मिलने पर ही फल देने में समर्थ होता है वैसे ही यह कल्पसूत्र भी देव गुरु की पूजा प्रभावना और साधर्मिक की भक्ति आदि सर्व सामग्री के साथ सुनने से ही यथार्थ फल देनेवाला होता है। अन्यथा सर्व जिनवरों में श्रेष्ठ श्रीवर्धमानस्वामी को किया हुआ एक भी नमस्कार पुरुष या स्त्री को इस संसारसागर से पार उतार देता है, ऐसा वचन सुनकर प्रयाससे साध्य इस कल्पसूत्र के सुनने में भी आलस्य आजायगा ।
यह एक नियम है कि पुरुष के विश्वास से ही उसके वचन पर विश्वास जमता है इस लिए यहाँ पर कल्पसूत्र के कर्ता को बतलाते हैं। इसकी रचना करनेवाले चौदह पूर्वधारी युगप्रधान श्रीभद्रबाहुस्वामी हैं। उन्होंने प्रत्याख्यानप्रवाद नामक नवमे पूर्व में से उध्धृत कर के जो दशाश्रुतस्कंध शास्त्र बनाया उसका यह आठवां अध्ययन है। इस लिए महापुरुष प्रणीत होने से यह प्रमाणभूत है।
पूर्वी का प्रमाण पहला पूर्व एक हाथी प्रमाण स्याही के पुंज से लिखा जा सकता है, दूसरा पूर्व दो हाथी प्रमाण स्याही,
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