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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org साध्वियों की संपदा हुई । नन्द प्रमुख एक लाख उणत्तर हजार (१६९००० ) श्रावकों की उत्कृष्ट श्रावक संपदा हुई । महासुव्रत आदि तीन लाख छत्तीस हजार ( ३३६०००) उत्कृष्ट श्राविकाओं की श्राविका संपदा हुई । केवली न होने पर भी केवली समान चारसौ (४००) चौदह पूर्वियों की, पंद्रहसौ ( १५०० ) अवधिज्ञानियों की, पंद्रहसौ ( १५०० ) केवलज्ञानियों की, पंद्रहसौ ( १५०० ) वैक्रिय लब्धिधारी मुनियों की, एक हजार (१००० ) विपुल मतिवाले मुनियों की आठसौ (८००) वादियों की और सोलहसौ ( १६०० ) अनुत्तर विमान में पैदा होनेवाले मुनियों की संपदा हुई । तथा पंद्रहसौ ( १५०० ) साधु और तीन हजार ( ३०००) साध्वियाँ मोक्ष गई । - अर्हन् श्रीनेमिनाथ प्रभु की दो प्रकार की अन्तकृत् भूमि हुई । एक युगान्तकृत् भूमि और दूसरी पर्यायान्तकृत् भूमि । प्रभु के बाद आठ पट्टधरों तक मोक्षमार्ग चलता रहा यह युगान्तकृत् भूमि और प्रभु को केवलज्ञान हुए बाद दो वर्ष पीछे मोक्षमार्ग शुरू हुआ सो पर्यायान्तकृत् भूमि जानना चाहिये । परमात्मा का निर्वाण कल्याणक - Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पर्याय पालकर, चौपन दिन कम पालकर एवं एक हजार वर्ष का उस काल और उस समय अर्हन् श्रीनेमिनाथ प्रभु तीनसौ वर्ष कुमारावस्था में रहे । चौपन दिन छद्मस्थ सातसौ वर्ष केवलीपर्याय पालकर, परिपूर्ण सातसौ वर्ष चारित्र पर्याय सर्वायु पालकर वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म के क्षय हो जाने पर इसी For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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