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भी कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
॥ ११२ ॥
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को तू तप करके क्यों सुकाती है ? इस लिए हे भद्रे ! तू इच्छापूर्वक यहाँ आ और हम दोनों अपना जन्म सफल करें। फिर अन्तमें हम तपविधि का आचरण कर लेंगे ।
महासती राजीमती यह सुन कर और उसे देख अद्भुत धैर्य धारण कर बोली- हे महानुभाव ! तू नर्क के मार्ग का अभिलाष क्यों करता है ? सर्व सावद्य का त्याग कर के फिरसे उसकी इच्छा करते हुए तुझे लज्जा नहीं आती ? अगन्धन कुलमें जन्मनेवाले तिर्यंच सर्प भी जब वमन किये पदार्थ को नहीं इच्छते तब फिर क्या तू उनसे भी अधिक नीच है १
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इस प्रकार के राजीमती के वचनों को सुनकर बोध को प्राप्त हो रथनेमि मुनि भी श्री नेमिनाथ प्रभु के पास जाकर अपने अतिचारों की आलोचना कर घोर तपस्या कर के मोक्ष गये । राजीमती भी चारित्र आराधन कर अन्त में मोक्षशय्या पर आरूढ हो गई और बहुत समय से प्रार्थित श्रीनेमि प्रभु के शाश्वत संयोग को उसने प्राप्त कर लिया । राजीमती चारसौ वर्ष तक गृहवास में रही, एक वर्ष तक छद्मस्थ पर्याय में रही और पाँचसौ वर्ष तक केवलीपर्याय पालकर मुक्ति गई ।
अर्हन् श्रीनेमिनाथ प्रभु के अट्ठारह (१८००० ) साधुओं की उत्कृष्ट संपदा
- प्रभु का परिवार
गण और अट्ठारह ही गणधर हुए। वरदत्त आदि अठ्ठारह हजार हुई । आर्य यक्षिणी प्रमुख चालीस हजार (४०००० ) उत्कृष्ट
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सातवां
व्याख्यान.
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