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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम व्याख्यान. कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद। पांचवें गुण से लेकर बाहरवे गुण पर्यन्त मध्यम क्षेत्र समझना चाहिये । प्रथम उत्कृष्ट क्षेत्र की गवेषणा करना। वैसा न मिलने पर मध्यम क्षेत्र खोजना और यदि वह भी न मिले तो जघन्य क्षेत्र में चातुर्मास करना; परन्तु वर्तमानकाल में तो गुरु महाराजने आज्ञा की हो उस क्षेत्र में मुनियों को चातुर्मास करना चाहिये । दश प्रकार के कल्प (आचार) पर वैद्य की कथा ऊपर बतलाया हुआ यह दश प्रकार का कल्प यदि दोष के अभाव में किया हो तो तीसरे वैद्य की औषधी के समान गुणकारी होता है। किसी एक राजाने अपने पुत्र को भविष्य में रोग न हो ऐसी चिकित्सा करने के | लिए तीन वैद्य बुलवाये । उनमें से प्रथम वैद्य बोला कि मेरी औषधि यदि रोग हो तो उसका नाश करती है और रोग न होतो दोष प्रकट करती है। राजा बोला-सोते हुए सर्प के जगाने के समान ऐसी औषधि से मुझे प्रयोजन नहीं । दूसरा वैद्य बोला कि मेरी औषधि यदि रोग हो तो उसे नष्ट करती है और रोग न होतो न गुण न दोष करती है-राजाने कहा यह भी राख में घी डालने के समान है, ऐसी औषधि की कोई जरूरत नहीं। तीसरे वैद्यने कहा कि मेरी औषधि यदि शरीर में रोग होतो उसे नष्ट करती है और रोग न हो तो बल, वीर्य, सौन्दर्य आदि की पुष्टि करती है । राजाने कहा कि-यह औषधि सर्वश्रेष्ठ है । वैसे ही यह कल्प भी दोष हो तो उसका नाश करता है, दोष न हो तो धर्म का पोषण करता है । इस लिए प्राप्त हुए पयुषणा पर्व में मंगल के निमित्त पांच दिन में नव वाचनाओं द्वारा कल्पसूत्र का वांचना श्रेयस्कर है। ॥८॥ For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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