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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir गण कहते हैं और उस गण के नायक-सूरि वे गणधर कहलाते हैं । वे श्रीपार्श्वनाथ के आठ थे, परन्तु आवश्यक सूत्र में दश गण और दश गणधर कहे हुए हैं। स्थानांग सूत्र में दो अल्पायुषी होने के कारण वे नहीं कथन किये, ऐसा टिप्पण में बतलाया है। उन आठों के नाम ये थे-शुभ, आर्यघोष, वशिष्ट, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरभद्र और यशस्वी । पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु के आर्यदिन आदि सोलह हजार ( १६०००) साधुओं की उत्कृष्ट साधुसंपदा हुई । पुष्पचूला प्रमुख अड़तीस हजार ( ३८०००) साध्वियों की उत्कृष्ट साध्वीसंपदा हुई । सुव्रत प्रमुख एक लाख चोसठ हजार (१६४०००) श्रावकों की उत्कृष्ट श्रावकसंपदा हुई। सुनन्दा प्रमुख तीन लाख सत्ताइस हजार (३२७०००) श्राविकाओं की उत्कृष्ट श्राविकासंपदा हुई । केवली न होने पर भी केवली के समान साढ़े तीनसौ (३५०) ऐसे चौदह पूर्वियों की उत्कृष्ट संपदा हुई। चौदह सौ (१४००) अवधिज्ञानियों की, एक हजार (१०००) केवलज्ञानियों की, ग्यारह सौ (११००) वैक्रिय लब्धिधारी मुनियों की और छहसौ (६००) मनःपर्याय ज्ञानवाले मुनियों की संपदा हुई । एवं एक हजार (१०००) साधु मोक्ष गये और दो हजार (२०००) साध्वियाँ मुक्ति गई। आठसौ (८००) विपुलमतियों की, छह सौ (६००) वादियों की तथा बारह सौ (१२००) अनुत्तर विमान में पैदा होनेवाले मुनियों की संपदा हुई। पुरुष प्रधान श्रीपार्श्वनाथ प्रभु की दो प्रकार की अन्तगड़ भूमि हुई। पहली युगान्तकृत् भूमि और दूसरी For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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