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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी अनुवाद |
॥ १०२ ॥
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पुरुषों में प्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ रखकर देव, मनुष्य और तिर्यंचों द्वारा उनमें देवकृत उपसर्ग कमठजीव मेघमाली
पहले भी पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रभु को गृहस्थ धर्म में मनुष्य के योग्य अनुपम उपयोगरूप अवधिज्ञान था । पूर्वोक्त वीर प्रभु के समान सब कुछ समझ लेना चाहिये । यावत् गोत्रियों को धन बाँट कर, शरद् काल का जो दूसरा मास, तीसरा पक्ष, अर्थात् पोष मास का कृष्ण पक्ष, उस पोष मास की कृष्ण एकादशी के दिन प्रथम पहर में विशाला नाम की पालकी में बैठकर देव, मनुष्य और असुरों का समूह जिन के आगे चल रहा है ऐसे प्रभु वाणारसी नगरी के मध्य भाग से निकल कर आश्रमपद नामा उद्यान में जाते हैं। अशोक वृक्ष के नीचे आकर अपनी पालकी को ठहरवाते हैं। पालकी में से उतर कर अपने आप शरीर से आभूषण माला आदि उतारते हैं, फिर प्रभु स्वयं पंच मुट्ठी लोच करते हैं, चौविहार अहम का तप कर विशाखा नक्षत्र में चंद्रयोग प्राप्त होने पर इंद्र का दिया एक देवदूष्य वस्त्र ले प्रभु तीन सौ मनुष्यों के साथ घरत्याग कर साधुपन को प्राप्त होते हैं अर्थात् दीक्षा ग्रहण करते हैं ।
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प्रभुने तिरासी दिन तक निरन्तर शरीर को वोसरा कर अर्थात् ममत्व न किये हुए अनुकूल वा प्रतिकूल उपसर्गों को भली प्रकार सहन किया । का है जो निम्न प्रकार से है । मेघमाली का घोर उपसर्ग
दीक्षा लेकर विचरते हुए प्रभु एक दिन एक तापस के आश्रम में एक कुवे के नजीक बड़ के वृक्ष नीचे एक
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सातवां व्याख्यान.
॥ १०२ ॥