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सातवां व्याख्यान
कसस्त्र हिन्दी बनुवाद।
रात्रि बहुत से देव-देवियों से आकुल अर्थात् हर्ष परिपूर्ण शब्द से कोलाहलमयी होगई ।
शेष प्रभु का जन्म महोत्सव आदि वृत्तान्त प्रभु वीर के समान समझ लेना चाहिये, परन्तु पार्श्वनाथ के नाम से कहना चाहिये । जब प्रभु गर्भ में थे तब शय्या में रही हुई माताने अपने पास से जाता हुआ कृष्ण सर्प देखा था इसी कारण उनका नाम पार्श्व रक्खा था । अब क्रम से प्रभु यौवन वय को प्राप्त हुए । अर्थात् इंद्रद्वारा नियुक्त की हुई पांच धाय माताओं से लालितपालित होते हुए नव हाथ शरीर प्रमाणवाले युवावस्था को प्राप्त हुए । कुशस्थल के राजा प्रसेनजित की प्रभावती कन्या के साथ प्रभु के मातापिताने उनका विवाह किया।
नागोद्धार एक दिन अपने महल में प्रभु बारी में बैठे थे। उस वक्त एक दिशा तरफ पुष्पादि पूजा की सामग्री सहित नगरजनों को जाते देख प्रभुने किसी एक मनुष्य से पूछा कि ये लोग कहाँ जाते हैं ? उस मनुष्यने कहा कि-हे स्वामिन् ! नगर से बाहर किसी ग्राम का रहनेवाला जिस के माता पिता मर गये हैं ऐसा एक कमठ नामक तापस आया है, वह दरिद्री ब्राह्मण पुत्र लोगों की सहायता से अपनी आजीविका चलाता था । एक दिन उसने रत्नाभरण भूषित नगर निवासियों को देख कर विचारा कि अहो ! यह सब ऋद्धि पूर्व जन्म के तप का फल है। यह जान कर वह उस दिन से पंचाग्नि आदि तप तपने लगा है। बस वही कमठ तापस नगरी से बाहर आया हुआ है उसकी पूजा करने को ये सब लोग जाते हैं । यह सुन कर प्रभु भी सपरिवार
॥१.१॥
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