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भी
सातवा व्याख्यान
कल्पसूत्र
प्रथम वाचना कराई, उस आनन्दपुर की स्तुति कौन नहीं करता ? 'वल्लहीपुरंमि नयरें' इत्यादि वचन से पुस्तक लेखनकाल तो उपरोक्त प्रसिद्ध ही है परन्तु तत्व केवली जाने । इति श्रीवीरचरित्रं ।
इस प्रकार महोपाध्याय श्रीकीर्तिविजय गणि के शिष्योपाध्याय श्रीविनयविजयजी गणि की रची हुई कल्पसूत्र की सुबोधिका नामा टीका के हिन्दी अनुवाद में छठा व्याख्यान समाप्त हुआ।
अनुवाद ।
सातवा व्याख्यान.
श्रीपार्श्वनाथ भगवान् का जीवन चरित्र । अब जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट वाचना द्वारा श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का चरित्र कहते हैं।
उस काल और उस समय में पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु के पाँचों कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुए । विशाखा नक्षत्र में प्रभु स्वर्ग से च्यवकर माता के गर्भ में उत्पन्न हुए, विशाखा नक्षत्र में प्रभु का जन्म हुआ, विशाखा नक्षत्र में ही घर का त्याग कर पंच मुष्टि लोच करके प्रभुने दीक्षा ग्रहण की। विशाखा नक्षत्र में ही प्रभु अनन्त, अनुपम, निर्व्याघात, निरावरण, समग्र और परिपूर्ण केवलज्ञान एवं केवलदर्शन पाये और विशाखा नक्षत्र में ही प्रभु मोक्ष सिधारे ।
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