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श्री कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद ।
व्याख्यान.
॥८४॥
परलोक में प्रतिबन्ध रहित, एवं जीवित और मरण में इच्छा रहित थे । तथा संसाररूप समुद्र के पारको पाये कर्मरूप शत्रुओं का नाश करने के लिए उद्यमवान् होकर प्रभु विचर रहे थे।
इस प्रकार विचरते हुए अनुपम ज्ञान से, अनुपम दर्शन से, अनुपम चारित्र से, आलय-स्त्री, नपुंसकादि के संसर्ग से रहित स्थान में रहने से, अनुपम विहार से, अनुपम पराक्रम से, अनुपम सरलता से, अनुपम निरभिमानता से, अनुप लाघवता से, अनुपम क्षमाशीलता से, अनुपम निर्लोभता से, अनुपम मनोगुप्ति आदि से, अनुपम संतोष से, एवं सत्य संयम तथा बारह प्रकार के तपाचरण से और अनुपम मोक्षमार्ग से, अर्थात् पूर्वोक्त । गुणों के समूह से आत्मा का ध्यान करते हुए प्रभु महावीर को बार वर्ष बीत गये। इतने समय में प्रभुने जो तप किया वह इस प्रकार था। छ मासी तप| छ मासी तप | चार मासी तप | तीन मासी तप । ढाई मासी दो मासी| डेढ़ मासी
१ ।१पांच दिन न्यून | मासक्षपण पक्षक्षपण | भद्र प्रतिमा | महाभद्र प्रतिमा | सर्वतोभद्र प्रतिमा | छट्ठ | अतुम
दिन दो २ । दिन ४
दीक्षा | सर्वाग्रं वर्ष १२ दिन ३४९
दिन १
मास ६ दिन १५ उपरोक्त सर्व तप प्रभुने पानी रहिस किया था और उस साढ़े बारह वर्ष के दरम्यान एक उपवास या
१२
७२
दिन १०
।
२२९ ।
१२
पारणा
॥८४॥
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