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श्री कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
॥ ८० ॥
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आप के अन्दर से क्रोध निकाल कर चला गया। उसने छह महीनों तक प्रभु को शुद्ध आहार न मिलने दिया। छह मास बीतने पर अब संगम देव चला गया होगा यह समझकर एक दिन वज्र नामक ग्राम के गोकुल में गौचरी गये । परन्तु वहाँपर भी उस देवकृत अनेषणीय आहार प्रभु ज्ञान से जानकर वापिस लौट आये और ग्राम बाहर ध्यानस्थ मुद्रा में रहे। फिर इतने दिन पीछे पड़ने पर भी उस देवने अवधिज्ञान से लेशमात्र भी प्रभुको विचलित न देख तथा विशुद्ध परिणामवाले देख खिसियाना होकर शक्रेंद्र के डर से प्रभु को वन्दन कर सौधर्म देवलोक का रस्ता पकड़ा । उसी गोकुल में फिरते हुए प्रभु को एक बुढ़िया ग्वालनने खीर का आहार दान दिया इस से वहाँ पंच दिव्य प्रगट हुए ।
इधर जबतक प्रभु को उपसर्ग हुए तबतक सौधर्म देवलोक में रहनेवाले समस्त देव और देवियाँ आनन्द एवं उत्साह रहित रहे । इंद्र भी गीत नाटकादि तजकर " इन उपसर्ग का मैं ही कारण बना हूँ क्यों कि मेरी की हुई प्रभुप्रशंसा सुनकर ही इस दुष्ट संगमने प्रभु को उपसर्ग किये हैं " यह विचार कर अत्यन्त दुःखितवाला हो हाथ पर मुख रखकर दीनदृष्टि युक्त उदासीनता में बैठा रहा । अब भ्रष्ट प्रतिज्ञा तथा श्याममुखवाले नीच संगम को आता देख इंद्रने पराङ्मुख होकर देवों से कहा- हे देवो ! यह दुष्ट कर्मचाण्डाल पापी आरहा है, इसका दर्शन भी महापापकारी है, इसने हमारा महान् अपराध किया है, क्यों कि इसने हमारे पूज्यस्वामी की कदर्थना की है, वह पापात्मा हमसे तो न डरा परन्तु पाप से भी न डरा इस लिए ऐसे दुष्ट और अपवित्र देव
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중
व्याख्यान.
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