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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद । ॥ ७९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शिष्य के पास से कुछ अष्टांग जानकर अहंकार से लोगो में अपने आपको सर्वज्ञ प्रसिद्ध करने लगा । दशवां चौमासा प्रभुने श्रावस्थी नगरी में किया और वहाँ पर उन्होंने विचित्र प्रकार का तप भी किया । संगम देवता के घोर उपसर्ग । इस प्रकार अनुक्रम से प्रभु बहुत म्लेच्छोवाली दृढभूमि में पधारे। वहाँ पेढाल ग्राम के बाहर पोलास के चैत्य में अहम तपपूर्वक प्रभु एक रात्रि की प्रतिमा ध्यान लगा कर रहे । इस समय इंद्रने अपनी सभा में देवों के समक्ष प्रभु की प्रशंसा करते हुए कहा कि-वीरप्रभु के चित्त को चलायमान करने के लिए तीन लोक के निवासी भी समर्थ नहीं हैं। इस तरह प्रभु की प्रशंसा सुनकर संगम नामक मिथ्यादृष्टि सामानिक देव ईर्षा से इंद्र के सामने प्रतिज्ञा करने लगा कि मैं उन्हें क्षणवार में चलायमान् कर दूंगा। यह प्रतिज्ञा कर उसने तुरन्त ही प्रभु के पास आकर प्रथम तो धूल की वृष्टि की जिस से प्रभु के आँख, नाक, कान आदि के विवरछिद्र बन्द हो जाने से वे श्वास लेने को भी असमर्थ हो गये । फिर वज्र के समान तीक्ष्ण मुखवाली चींटियाँ बनाकर प्रभु के शरीर पर छोड़ी। उन्होंने प्रभु का शरीर छलनी के समान छिद्रवाला कर दिया । एक तरफ से प्रवेश कर दूसरी ओर से निकलने लगीं । इसी प्रकार फिर तेज मुखवाले डाँस, तीक्ष्ण मुखवाली घीमेलिका, (कीडियां) बिच्छु, न्योले, सर्प, चूहे आदि के भक्षण से, फिर हाथी, हथनियाँ बनाकर उनके सूँड द्वारा आघातों से For Private And Personal छड्डा व्याख्यान. |||| 08 ||
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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