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श्री
छट्ठा व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद।
कर । जिसने प्रथम दान दिया है वही अब भी देने में समर्थ है, क्योंकि पानी के अर्थी जब सूखी हुई नदी खोदते हैं तब वह भी उन्हें पानी देती है। इस तरह स्त्री के वचनों से प्रेरित हो वह ब्राह्मण प्रभु के पास आकर प्रार्थना करने लगा-हे प्रभो! आप जगत के उपकारी हैं, आपने समस्त जगत का दारिद्य दूर किया है। मैं निर्भागी उस समय यहाँ नहीं था और मुझे परदेश में भटकते हुए को भी कुछ नहीं मिला । इस लिए पुण्यहीन, अनाश्रित और निर्धन मैं जगत को वांछित देनेवाले प्रभो! आप के शरण आया हूँ। संसार का दारिद्य दूर करनेवाले को मेरा दारिद्य दूर करना क्या बड़ी बात है ? क्यों कि-संपूरिता शेषमहीतलस्य, पयोधरस्याद्भुतशक्तिभाजः। किं तुम्बपात्रप्रतिपूरणाय, भवेत्प्रयासस्य कणोपि नूनम् ॥ १॥ जिसने सारे महीतल को भर दिया ऐसे अद्भुत शक्तिशाली मेघ को एक तुंचा भरने में क्या प्रयास करना पड़ेगा? इस प्रकार प्रार्थना करते हुए उस ब्राह्मण को करुणावन्त भगवन्तने आधा देवदृष्य वस्त्र दे दिया। यहाँ पर कितनेएक आचार्यो का मत है कि ऐसे दानेश्वरी भगवानने विना प्रयोजन वस्त्र का भी जो आधा भाग दान दिया सो प्रभु की संतति में होनेवाली वस्त्र पात्र पर मूर्छा को सूचित करता है। दूसरे कहते हैं-प्रथम जो ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे उसीका वह संस्कार है।
अब उस ब्राह्मणने वह अर्ध वस्त्र ले कर उसके किनारे ठीक करने के लिए एक रफूकार को दिखलाया । उस रफूकारने कहा है विप्र! तू भी उसी प्रभु के पास जा वह निर्मम और करुणावान् प्रभु शेष आधा वस्त्र भी
॥७०॥
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