SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रमण भगवन्त श्रीमहावीरस्वामी एक वर्ष और एक मास तक वस्त्रधारी रहे, इसके बाद वस्त्र रहित रहे एवं हाथ में ही आहार करते रहे, प्रभु का वस्त्र रहित होना निम्न प्रकार है । प्रभु के दीक्षा लेने पर एक वर्ष और एक मास बीते बाद दक्षिण वाचाल नामा नगर के पास सुबर्णवालुका नामा नदी के किनारे काँटों में उलझ कर आधा देवदूष्य वस्त्र गिर जाने पर प्रभुने सिंहावलोकन से पीछे दृष्टी । यहाँ कितने एक कहते हैं कि प्रभुने ममता से पीछे देखा था, कितनेएक कहते हैं कि वह वस्त्र शुद्ध भूमि पर पड़ा या अशुद्ध पर यह जानने के लिये उन्होंने पीछे देखा था । कितनेएक कहते हैं कि हमारी संतति में वस्त्र पात्र सुलभ होगा या दुर्लभ यह जानने के लिए पीछे देखा था। कई का मत हैं कि वस्त्र काँटों में उलझने से अपना शासन कंटकबहुल होगा यह विचार स्वयं निर्लोभी होने से वह अर्ध वस्त्र उन्होंने फिर वापिस नहीं लिया । अर्ध व प्रभु के पिता का मित्र एक ब्राह्मण उठा ले गया। आधा वस्त्र प्रभुने प्रथम ही उसे दे दिया था, वह वृत्तान्त इस प्रकार है - वह ब्राह्मण दरिद्री था और अब प्रभुने वर्षीदान दिया तब परदेश गया हुआ था। दुर्भाग्यवश परदेश से खाली हाथ आया, तब उसकी स्त्रीने तर्जना की कि हे - दुर्भाग्यशिरोमणि ! जब श्री वर्धमानने सुवर्ण की वृष्टि की तब तूं परदेश चला गया और वहाँ से भी अब खाली हाथ आया ? अतः मेरे सामने से दूर चला जा, मुझे मुख न दिखला, अथवा जा अब भी उसी जंगम कल्पवृक्ष के पास जा कर याचना For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy