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जड़ा सुवर्ण आभूषण भी साथ लिये, विद्यार्थियों के लिए सुन्दर वस्त्र भी लिये । इस प्रकार पढ़ने के योग्य सकल सामग्री साथ लेकर प्रभु को कुल वृद्ध स्त्रीयों द्वारा तीर्थोदक से स्नान कराकर श्रेष्ठ वस्त्राभूषणों से कान्ति युक्त कराकर, मस्तक पर मेघाडम्बर(छत्र ) धारण करा, दोनों और चामर का व्यजन कराते हुए चतुरंगी सेना सहित, आगे अनेक प्रकार के बाजे बजाते हुए पण्डित के घर ले जाते हैं। पंडित भी राजकुमार को पढ़ाने योग्य क्षीरसमुद्र के जल समान उज्वल धोती पहन, सुवर्ण का यज्ञोपवीत धारण कर केशर के तिलक आदि की सामग्री करता था।
उस समय पीपल के पत्र समान, हाथी के कान समान, कपटी के ध्यान समान, राजा के मान समान, इंद्र का सिंहासन चलायमान हुआ। अवधिज्ञानद्वारा सब वृत्तान्त जान कर इंद्र देवों को कहने लगा-अहो! यह कैसा आश्चर्य है ? प्रभु को पाठशाला में पढ़ने के लिए ले जा रहें है !!! यह भी वैसे ही है जैसे आम्रवृक्ष पर उसके पत्तों की बंदरवाल बाँधना, अमृत में मिठास डालना, सरस्वती को पाठविधि सिखलाना, चंद्र में सुफेदपन का आरोपन करना, सुवर्ण को सुवर्ण के पाणी के छींटे देने ऐसा ही प्रभु को पढ़ाने के लिए पाठशाला में ले जाना है । तीर्थकर के सामने जो वचन बोलते हैं वे तो माता के समक्ष मामा की प्रशंसा करने के समान है, लंका नगरी में जाकर समुद्र की लहरों का वर्णन करना, समुद्र को नमक की भेट करना, वैसा ही भगवन्त को पढाना है। जिनेश्वर विना ही पड़े विद्वान्, निद्रव्य परमेश्वर और विना ही अलंकार मनोहर हैं। ऐसे भगवन्त आपका कल्याण करें,
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