SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ ५६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अब प्रातःकाल में प्रियंवदा नामा दासीने जल्दी राजा के पास जाकर पुत्रजन्म की बधाई दी । उस वधाई को सुन कर सिद्धार्थ राजा अत्यन्त हर्षित हुआ । उस हर्ष के कारण उसकी वाणी भी गद्गद् होगई और शरीर पर रोमांच होगया । राजाने अपना मुकुट रख कर शरीर के तमाम आभूषण प्रियंवदा को दे दिये और हाथ से उसका मस्तक धोकर उस दिन से उसका दासीपन दूर कर दिया । जिस रात्रि में श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभुने जन्म लिया उस रात्रिको कुबेर की आज्ञा माननेवाले बहुत से तिर्यगूजृंभक देवोंने सिद्धार्थ राजा के घर में सुवर्ण, चाँदी, हीरों तथा वस्त्रों एवं आभूषणों की, पत्रों, पुष्पों तथा फलों की, शाली आदि के बीजों की, पुष्पमालाओं की, सुगन्ध की, वासक्षेप की, हिंगलादि वर्ण की तथा द्रव्य की वृष्टि की। प्रभातकाल के समय सिद्धार्थ राजाने नगर के आरक्षकों को बुलवाया और उनको आज्ञा दी कि - हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही इस क्षत्रियकुण्ड नाम के नगरमें जितने जेलखाने हैं उन सब को साफ करो ! अर्थात् उनमें रहनेवाले तमाम कैदियों को छोड़ दो! कहा भी है कि-युवराज के अभिषेक समय, शत्रु के राज्य का नाश करते समय तथा पुत्र जन्मोत्सव के समय कैदियों को बन्धन मुक्त करना चाहिये । तथा नाप कर देनेवाली और तोल कर देनेवाली वस्तुओं के माप (प्रमाण) में वृद्धि करा दो। ऐसा कराकर इस क्षत्रियकुण्डगाम नगर को अन्दर और बाहर से अत्यन्त शोभायुक्त कराओ । सुगन्धि जल का छिडकाव कराओ, कूड़ाकचरा सब दूर करो, गोबर For Private And Personal पांचवां व्याख्यान. ॥ ५६ ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy