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द्वारा कलशों में से नीचे गिरता हुआ क्षीरसमुद्र का जल तुम्हारी लक्ष्मी के लिए हो (तुम्हारे कल्याण के लिए हो) । फिर इंद्रने चार बैलों का रूप धारण किया और उनके आठ शृङ्गों से दूध की धारा द्वारा वह प्रभु का अभिषेक करने लगा । सचमुच ही देव बड़े चतुर होते हैं क्यों कि उन्होंने स्नान तो प्रभु को कराया और निर्मल अपने आपको कर लिया । देवोंने मंगल दीपक तथा आरती करके नृत्य, गीत और वाद्य आदिसे विविध प्रकार से महोत्सव किया । इंद्रने गंध कषाय नामक दिव्य वस्त्र से प्रभु के अंग को रूखा कर चंदनादि से विलेपन कर पुष्पों से पूजन किया। फिर प्रभु के सन्मुख रत्नों के पट्टे पर चाँदी के चावलों से इंद्रने दर्पण, वर्धमान, कलश, मत्स्ययुगल, श्रीवत्स, स्वस्तिक, नन्दावर्त तथा सिंहासन इन आठ मंगलों को आलेखित कर प्रभु की स्तुति की । तत्पश्चात् प्रभु को उनकी माता के पास लाकर रक्खा और प्रभु का जो प्रतिबिंब था उसे और अवस्वापिनी निद्रा को वापिस ले लिया। फिर इंद्रने वहाँ एक तकिया, कुण्डल और रेशमी वस्त्र की जोड़ी रख्खी | चंद्रवे में श्रीदाम, रत्नदाम और सुवर्ण की गेंद रक्खी। बत्तीस करोड़ सौनैयों, रुपयों और रत्नों की वृष्टि करा कर इंद्रने आभियोगिक देवों से घोषणा करा दी - प्रभु या प्रभु की माता की तरफ जो कोई मनुष्य अशुभ विचार करेगा उस के मस्तक के अर्जुन वृक्ष की मंजरी के समान सात टुकडे होजायेंगे। अब वह प्रभु के अंगुठे में अमृत स्थापन कर तथा नन्दीश्वर द्वीप में अठाई महोत्सव कर सब देवों सहित अपने स्थान पर चला गया। इस प्रकार देवताओं द्वारा किया हुआ प्रभु महावीर का जन्मोत्सव समजना चाहिए ।
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