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पांचवां व्याख्यान
कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद ।
बैठ कर, गीत गान होते हुए इंद्र वहाँ से चल पड़ा । पालक विमान के सिवा अपने २ विमानों द्वारा और भी बहुत से देव चल पड़े । उन में कितनेक तो इंद्र की आज्ञा से, कितनेक मित्रों की प्रेरणा से, कितनेक अपनी पत्नी की प्रेरणा से, कितनेक तमासा देखने की भावना से, कई एक आश्चर्य देखने के लिए, कई एक आत्मीय भाव से और कई एक भक्तिभाव से चल दिये । उस समय अनेक प्रकार के बाजों के शब्द से, घंटों के निनादों से, देवताओं के कोलाहल से सारा बह्माण्ड गूंज उठा । सिंहाकृतिवाले विमान पर बैठा हुआ देव हाथी पर बैठे | हुए देव को कहता है कि भाई ! अपने हाथी को दूर बचा ले वरना दुर्धर मेरा केशरी इसे मार डालेगा। इसी तरह भैंसे पर बैठा घोड़े सवार को, गरुड़ पर बैठा हुआ सर्पवाले को और चीते पर बैठा हुआ बकरेवाले को सादर कहता है। उस समय करोड़ों देव विमानों से विशाल आकाश भी संकीर्णसा हो गया। कितनेएक देव उत्सुकता से मित्र को छोड़ कर आगे बढ़ रहे थे, कितनेक कहते थे कि भाई ! जरा ठहरो हम भी आते हैं, कइएक कहते थे कि भाई ! पर्व के दिन संकीर्ण ही होते हैं इस लिए चुपचाप चले आओ। इस प्रकार आकाश मार्ग से गमन करते देवों के सिर पर चंद्रमा की किरणें पड़ने से वे वृद्ध जैसे शोभते थे । देवों के मस्तक पर रहे तारे घड़ों से लगते थे, गले में रत्नों के कंठे जैसे शोभते थे और शरीर पर पसीने के बिन्दु सरीखे शोभते थे। इस तरह इंद्र नन्दो श्वर द्वीप में विमान को संक्षेप कर वहाँ आया । भगवन्त तथा उनकी माता को तीन प्रदक्षिणा दे कर नमस्कार करता है और कहता है कि-हे रत्नकुक्षि ! जगत में दीपिका समान माता! आप को नमस्कार
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