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माता को जन्मस्थान में रख कर वे अपने अपने स्थान की ओर चली जाती हैं। उन दिक्कुमारियों के प्रत्येक के | साथ चार चार हजार सामानिक देव होते हैं, चार महत्तरायें होती हैं, सोलह हजार अंगरक्षक होते हैं, सात सेनायें और उनके अधिपति होते हैं, एवं अन्य भी महर्धिक देवता होते हैं और आभियौगिक ( नौकर) देवताओं द्वारा बनाये हुए एक योजनप्रमाण विमान में बैठ कर वहाँ आती हैं। इस प्रकार दिक्कुमारियों से किया हुआ जन्मोत्सव समझना चाहिए।
उस समय पर्वत के समान निश्चल इंद्र का आसन चलायमान हुआ। इस से अवधिज्ञान द्वारा इंद्रने अन्तिम तीर्थकर प्रभु का जन्म हुआ जाना । वज्रमय एक योजन प्रमाण सुघोषा नामक घंटा इंद्र ने नैगमेषी देव से बजवाया, जिस से समस्त देव विमानों की घंटियाँ बजने लगीं। देवों के उपयोग देने पर नैगमेपी देव ने उच्च स्वर से इंद्र की आज्ञा सुनाई, इस से हर्षित होकर देव चलने की तैयारी करने लगे । पालक नामा देव के बनाये हुए एक लाख योजन प्रमाणवाले विमान में इंद्र सवार होगया। फिर इंद्र के आसन के सामने इंद्र की अग्र| महिषियों के आठ भद्रासन बिछाये गये । इंद्र के बाईं ओर चौरासी हजार सामानिक देवों के भद्रासन थे।
दक्षिण तरफ बारह हजार अभ्यन्तर परिषदा के देवों के चौदह हजार भद्रासन थे। इसी तरह सोलह हजार बाह्य | परिषदा के भद्रासन थे। पिछले भाग में सात सेनापतियों के उतने ही भद्रासन, चारों और प्रत्येक दिशा में चौरासी हजार आत्मरक्षक देवों के थे । इस प्रकार अन्य भी बहुत से देव देवियों से वेष्टित और सिंहासन पर
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