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संस्था ५११
सखा संस्था स्त्री० [सं.] स्थिति (२) व्यवस्था सकलात पुं० रजाई (२) भेट (३) मंडळ; तंत्र
सकाना अ०क्रि० (प.) शंका आणवी; संस्थान पुं० [सं.] स्थिति; मुकाम; निवास वहेमा (२) संकोच के डरमां पडवं (२) हयाती
[प्रवर्तक सकाम वि० [सं.] कामनावाळं संस्थापक पुं० [सं.] स्थापना करनार; सकारना सक्रि० स्वीकार (२) संस्थापन पुं० [सं.] स्थापq ते शिकार
दलाली संस्मरण पुं० [सं.] संभार|
सकारा पुं० हूंडीनी शिकारणी-तेनी संहत वि० [सं.] संयुक्त; एक(२) सकारे अ० सवारे स क़ील) संपवाळं
सकालत स्त्री० [अ.] भारेपणुं (जुओ संहति स्त्री०[सं.] समूह (२) संप; मेळ सकिलना अ०क्रि० सरकवू; लपस (२) संहरना अ०क्रि० नाश थर्बु (२) संकडावं; संकोवा (३) थवू; बनवं सक्रि० संहारQ
सकील वि० [अ.] पचवामां भारे (२) संहार पुं० [सं.] नाश; वध; अंत वजनदार (नाम, सकालत) संहारक वि० [सं.] संहार करनार सकुच,-चाई स्त्री० संकोच; शरम संहारना सक्रि० संहार; नाश करवो सकुचना अक्रि० संकोच करवो; संहिता स्त्री० [सं.] वेद संहिता (२) शरमावं संग्रह (३) संहति; संप
सकुचाई स्त्री० संकोच; शरम सआदत स्त्री० [अ.] सद्भाग्य सकुन पुं० शकन (२) पक्षी सई स्त्री० [अ.] प्रयत्न
सकुनी स्त्री० पक्षी सईद वि० [अ] शुभ; सारं
सकून पु० जुओ 'सुकून' [निवास सऊबत स्त्री० [अ.] मुश्केली; आफत सकूनत स्त्री० [अ.] 'सुकूनत'; रहेठाण; सकट पुं० शकट; गाडी
सकृत् अ० [सं.] एक वार (२) सदा; सकता पुं० [अ.] मूर्छानो रोग; मृगी (२) सर्वदा (३) तरत . कवितामा यतिभंग. -पड़ना = यति
सकेलना सक्रि० एकत्र कर; संकेलq भंग थवो
सकोरा पुं० शकोरुं; 'कसोरा' सकना अ०क्रि० शकवं
सक्का पुं० [अ.] भिस्ती सकपकाना अ०क्रि० अचरज पाम, (२) सक्त वि० [सं.] आसक्त (२) संलग्न अचकावू (३) शरमावं
सक्ति स्त्री० (प.) शक्ति; बळ सकरकंदी स्त्री०, सकरकन पुं० सक्तु,०क पुं० सत्तु शक्करियं; सकरकंद
सक्फ पुं० [अ.] मकाननी छत सकरना अ०क्रि० 'सकारना' नुं कर्मणि सक्रिय वि० [सं.] क्रियावाळू सकरपाला पुं० सकरपारो
सखरा पुं०, सखरी स्त्री० सखडी; सकरिया पुं० शक्करियं।
बोटाय एवी रसोई दाळभात जेवी सकल वि० [सं.] सकळ; बधुं सखा पुं० [सं.] मित्र
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