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लौआ ४७६
वक़अत -उठना = झोळो नीकळवी. -लगना= लौट-फेर पुं० फेरफार; परिवर्तन लगनी लागवी
लौटाना सक्रि० पाछु आपवू (२) लौआ पुं० जुओ 'कद्द'
उलटाव; फेरव लौकिक वि० [सं.]लोक संबंधी;सांसारिक । लौटानी अ० पाछा फरती वखते लौकी स्त्री० दूधी
लोना पुं० 'लौनी'; लाणी (२) ढोरना लौज पुं० [फा.] बदाम के तेनी बरफी. आगळ पाछळना पग बांधती रसी (३) -जात, -जियात स्त्री० बदामनो (प.) वि० लवण; सुंदर हलवो. -जीना पुं० बदाम पिस्तां- लौनी स्त्री० लणणी; कापणी (२)(प.) वाळी एक मीठाई
माखण लौट स्त्री० पाछु आवq ते
लौलीन वि० (प.) जुओ 'लवलीन' लौटना अ०क्रि० पाछु आवq (२) ऊलटुं लौस पुं० [अ.] संबंध (२) मेल (३) कलंक थर्बु (नाम, लौट स्त्री०)
लौह पुं० [सं.]लोह(२)स्त्री० [अ.]लाकडानुं लौट-पौट स्त्री० ऊलट सुलट करवू ते पाटियु (३) पुस्तक- मुखपृष्ठ (२) बेउ बाजू सर छापकाम ल्यारी पुं० वरु; 'भेडिया'
वंक वि० [सं.] वांकु (२) पुं० नदीनो बांक वंदनीय, वंद्य वि० [सं.] वंदनने योग्य; वंकट वि० वांकु (२) विकट
पूज्य वंकाल पुं०, -ली स्त्री० सुषुम्णा नाडी वंदीगृह पुं० बंदीगृह; जेल वंकिम वि० [सं.] वांकु
वंदीजन पुं० [सं.] बंदीजन वंग पुं० [सं.] बंग; बंगाळ (२) सीसु (३) ।
वंद्य वि० [सं.] जुओ 'वंदनीय' वेंगण (४) कपास
वंश पुं० [सं.] वांस (२) कुल; जाति वंचक वि० [सं.] धूर्त; ठगारु ।
वंशज, वंशधर पुं० [सं.] संतान; ओलाद वंचन पं०, -ना स्त्री० [सं.] ठगाई; वंशलोचन पुं० [सं.] वांसलोचन औषधि छेतर ते
वंशावली स्त्री० [सं.] वंशनी सूचि वंचना सक्रि० वांचq (२) छेतरवू (३) . वंशी स्त्री॰ [सं.] बंसी; वासळी स्त्री० जुओ 'वंचन' मां
वंशीवट पुं० [सं.] वृंदावननो बंसीबट वंचित वि० [सं.] छेतरायेलं (२) रहित; व अ० [फा.] अने ['वरना' विनानुं
[लागतो प्रत्यय व-इल्ला अ० [अ.] नहीं तो; अगर तो; वंद [फा.] 'वाळं' ए अर्थमां शब्दने अंते। वक पुं० [सं.] बक; बगलो वंदन पं०, -ना स्त्री० [सं.] प्रणाम (२) वक़अत स्त्री० [अ.] ताकात (२) शाख; स्तुति (३) पूजन
आबरू (३) किंमत; महत्त्व
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