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बेखता
बूड़ना
३८४ बूड़ना अ०क्रि० बूडवू; डूबवू
बे-इंसाफ़ वि० [फा.] अन्यायी. -फ्री बूढ़ा वि०धरडु;वृद्ध. -डी स्त्री०बुढ्ढी स्त्री स्त्री० अन्याय; गेर-इन्साफ बूढ़ा, फॅ(-फू)स वि० अतिवृद्ध बे-इज्जत वि॰ [फा.] 'बेआबरू'; अपमान बूत, बूता पुं० बळ; शक्ति
पामेलुं.-ती स्त्री० अप्रतिष्ठा; अपमान बूदो-बाश स्त्री० [फा.] रहेठाण; निवास बे-इल्म वि० [फा. अभण. -ल्मी स्त्री० बूम पुं० [अ.] घुवड (२) स्त्री॰ [फा.]
अभणता जमीन
बे-ईमान वि० [फा.] अधर्मी (२) बूर स्त्री० लोटनुं चाळण-भूसु. -के अप्रामाणिक; बददानतवाळं; दगाबाज. लड्डू = छेतरपिंडी; दगो
-नी स्त्री० अमिता (२) दगो; जूठ; बूरा पुं० खांडनु बूरुं
बददानत बृहत् वि० [सं.] मोटुं; विशाळ
बे-उज वि० [फा.] कांई करवामां खटको
के बहानुं जेने न नडे एवं बेंग पुं० देडको बेंच स्त्री० [इ.] बेन्च; पाटली (२)
बे-क़द्र, -दर वि० [फा.] बेआबरू न्यायासननी -न्यायाधीशोनी बेन्च
(२) कृतघ्न [-री स्त्री
बे-करार वि० [फा.] बेचेन; अशांत. बेंचना सक्रि० वेचवं; 'बेचना'
बेकल वि० विकल; व्याकुळ (नाम,-ली) बॅट (-3) स्त्री० दस्तो; हाथो; मूठ । बेंत पुं० नेतर के तेनी सोटी; 'बेत'
बेकस वि० [फा. एकलं; असहाय (२)
गरीब; कंगाळ (नाम, -सी स्त्री०) बेंदा पुं० माथा- एक घरेणुं (२) तिलक;
बे-कसूर वि० जुओ 'बे-कुसूर' चांल्लो
बेकहा वि० को न माननार बेंदी स्त्री० माथा- एक घरेणुं
बे-काननी वि० गेरकायदेसर बेवड़ा पुं० बारणानी भुंगळ बे अ० [फा.] 'विना ना अर्थनो पूर्वग ।
बेकाबू वि० [फा.] काबू खोई बेठेलं;
विवश (२) काबूमां न आवे एवं उदा० बेईमान
बेकाम, बेकार वि० नवरु(२)नकाम; रद्दी बे-अंत वि० अनंत; बेहद
बेकायदा मि[फा.] अनियमित; कायदा बे-अक़ल वि० [फा.] अकल वगरनु;
विरुद्ध. (नाम, -दगी स्त्री०) अणसमजु; मूर्ख. -ली स्त्री० मूर्खता
बेकार वि॰ [फा.] काम वगरनु; नवरं (२) वे-अदब वि० [फा.) असभ्य; अविनयी;
व्यर्थ; नकामुं.-री स्त्री० उद्धत. -बी स्त्री० अविनय
बे-कुसूर वि० [फा.] निर्दोष; निरपराध बे-असल वि० [फा.] निराधार (२) जूठं बेख स्त्री० [फा. जड; मूळ. -व बुनियाद बे-आब वि० [फा.] पाणी वगरनू; =जडमूळ निस्तेज
बेखटक, के वि०(२)अ० खटका-संकोच बे-आबरू वि० [फा.] अप्रतिष्ठित;आबरू वगरनु; बेधडक वगरनुं. ०ई स्त्री० बेआबरू; शरम बेखतर वि० [फा.] निर्भय; नीडर बे-इंतहा वि० [फा.] असीम; अपार बेखता वि० बेकसूर; बेगुना; निर्दोष
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