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कांत
कहतजदा महतजदा पुं० दुकाळियो; खूब भूख्यो कांइयाँ वि० चालाक; पाकुं; पहोंचेल कहतसाली स्त्री० [अ.] दुकाळनो समय कांकर पुं० (प.) कांकरो. -री स्त्री० कहता पुं० कहेनार
कांकरी.-चुनना दु:खमां दिवस काढवा कहन स्त्री० कथन (२) वचन; वात कांख स्त्री० काख; बगल । (३) कहेवत (४) कवन; कविता काँखना अ० क्रि० करांजवू (२) श्रम कहना सक्रि० कहेवं.-बदना=नक्की. के पीडाथी ऊंह करवू करवं. कहबदकर प्रतिज्ञापूर्वक; दृढ । कांखासोती स्त्री० जनोई पेठे खेस संकल्पथी. कहनकी बात कहेवा मात्र पहेरवानी रीत -खरेखर नहि एवी वात
कांखी वि० (प.) कांक्षी; इच्छतुं - कहनावत, कहनूत स्त्री० कहेवत कांगडी स्त्री० काश्मीरमां गळे पहेराती कहनी स्त्री० कथनी; 'कहानी'
नानी शगडी कहर पुं० [अ.] केर; जुलम (२) क्रोध ।
कांग्रेस स्त्री ० कॉन्ग्रेस; महासभा. -सी (३) आफत (४) वि० भयंकर.-टूटना
वि० कॉन्ग्रेसने लगतुं(२)पुं० कॉन्ग्रेसमॅन =आफत आववी.-ढाना-केर वर्ताववो काँच स्त्री० काछडी (२) काच कहरन् अ० [अ. बळजोरीथी
कांचन पुं० [सं.] सोनुं (२) धंतूरो कहल पुं० कठारो; बफारो ।
कांचरी(-ली) स्वी० सापनी कांचळी कहलना अ० क्रि० तापथी बफावूकठवू कांजी स्त्री०आथो चडवा दईने बनावातो कहलवाना, कहला(-वा)ना स० क्रि० एक खाटो प्रवाही पदार्थ (२) फाटेला , कहेवडाव
दूधनुं के दहींनुं पाणी ढोरनो डबो कहवा अ० (प.) क्या?
कांजी-हाउस स्त्री० [इं. काइन-हाउस] कहवा पुं० [अ.] कावो; बुंद; कॉफी
कांटा पुं० कांटो (२) कुवामां नाखवानी कहाँ अ. क्यां?
बिलाडी (३) हिसाबनो ताळो (४) कहा 'पुं० कहेण; आज्ञा (२) स० शं ? आंकडो.(रास्तेमें)काँटा बिछाना-बच्चे (व्रजभाषा) (३) अ० (प.) केवी रीते विघ्न नांखq. -बोनाबूराई करवी. कहाकही स्त्री० बोलाबोली; 'कहा-सुनी' -होना=बहु दूबळं थQ. काँटेको कहाना स० क्रि० कहाव,
तोल = बरोबर तोल. काँटोंमें घसीटना कहानी स्त्री० कहाणी; कथा (२) जूठी =अति प्रशंसा करवी - कहेवानी वात
कांटी स्त्री० नानो कांटो (२) खीली कहार पुं० पालखी इ० ऊंचकनार-भोई काँठा पुं० कंठ (२) कांठलो (३) कांठो कहावत स्त्री०कहेवत(२)मरणनी चिठ्ठी ___ कांड़ना सक्रि० कचर; कूटवू : कहा-सुना पुं० भूलचूक (कहेलं सांभळेलु) कांड़ी स्त्री० जमीनमा दाटेली खांडणी कहा-सुनी स्त्री० तकरार; बोलाबोली (२) वांस के लाकडानो नानो टुकडो . कहीं अ० कोई जगाए; कहीं; क्यां कांडी-कफन पुं० ठाठडीनो सामान कहुँ (-हूँ) अ० (प.) जुओ 'कहीं कांत पुं० [सं.] पति
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