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पण तेनी कोई नीतिरीति के नियमबद्ध पद्धति भापणे हजी नथी विकसावी. ए काम पण आगळ जतां राष्ट्रभाषाने ज माथे भावशे एमां कोईने शंका छ ?
राष्ट्रभाषान आवं स्वरूप होवाथी तेने आपणे मात्र एक बोली रूपे जाणीने निरांत वाळीए, तो सांस्कृतिक प्रगतिमा गुजरात पाछळ ज पढे एमां शंका नथी. एटले भाषा तरीके तेनुं अध्ययन थर्बु जोईए, वध, जोईए, अने विकसतुं जोईए. तेने माटे बे दिशाओ देखाय छे :- (१) प्रौढ वर्ग हिंदी प्रचारनी परीक्षाओ आपवाने निमित्ते भाषानो शास्त्रीय अभ्यास शरू करे; (२) शाळाना विद्यार्थीओना अभ्यासक्रममां राष्ट्रभाषाने स्थान मळवू जोईए; - जे सुधारो, में शरूमां का ए प्रमाणे, गांधीजी आफ्रिकेथी देशमा व्या त्यारथो कहेता आल्या छे. प्रौढ वर्गोनी शरूआत गुजरातमा थई छे ए सौने खबर छे. तेनी गति दिवसे दिवसे वधशे एमां शंका नथी. अने सुखनी वात ए छे के, केळवणीना महासभावादी प्रधानोए शाळामां हिंदुस्तानी शिक्षणनी बीजी बावतने पोताना कार्यमां स्थान भाप्युं छे.
___ आ उपरांत एक त्रीजो वर्ग पण जरूरनो छ, भने ते उपरना बे वर्गोने मददरूप एवा राष्ट्रभाषाना प्रचारको अने तेना शिक्षकोनो. भा वर्गनी उत्पत्ति पण आजे गुजरातमां प्रारंभिक दशामा ज छे. जेम जेम आपणी राष्ट्रीय भस्मिता वधती जशे अने तेथी करीने राष्ट्रभाषानी किंमत वधारे ने वधारे जोता जईशुं, तेम तेम मा शिक्षफ-प्रचारक-वर्गे वधq ज जोईशे - ते वधशे ज. अने ए वर्ग उपरना बे वर्गोने पछी पहोंची वळशे.
राष्ट्रभाषानो आ गुजराती कोश आ त्रणे वर्गोने लक्षमा राखीने करवामां आव्यो छे. शाळानो विद्यार्थीवर्ग कदाच भा कोशने एकदम न पण अपनावी शके, परंतु राष्ट्रभाषाप्रेमी प्रौढ लोक अने ते भाषाना शिक्षकवर्गने आ कोशथी पूरती मदद मळ्शे एम मार्नु हुं. हिंदीमां अर्थो आपता कोशो आज पणा छे. परंतु ते कोशी आपणे माटे बे रीते ऊणपवाळा छे : एक तो, शीखवानो प्रारंभ करनारने हिंदीमा ज आपेला अर्थों बरोबर न फावे; ते अर्थों जो गुजरातीमा मापवामां आवे तो सरलता पडे. बीजं, प्रचलित हिंदी कोशोमां राष्ट्रभाषानी दृष्टि राखीने भने जरूर विचारीने शन्दो संघरायेला नथी होता. तेमां हिंदी साहित्यनी जरूर ध्यानमा राखेली होय छे, - अने ते योग्य ज छे. तेथी करीने ते कदमां मोटा भने अन्यभाषाभाषीने माटे बिनजरूरी विस्तारवाला थई पडे छे. आधी ते कोशो प्रारंभना अभ्यासमा काम दई शकता नथी.
मा कोशथी आ ऊणपो आपोआप टळे छे. तेमां शब्दोनी पसंदगी राष्ट्रभाषाना स्वरूपने बरोबर ख्यालमा राखीने करवामां आवी छे. फारसी अरवी शब्दो ने सामान्य रीते उत्तरना हिंदु-मुसलमानोमा बोलाय छे तेमने पण आ कोशमां स्थान भापवामां आव्युं छे. मा कामने अंगे विद्यापीठना सेवक भाई गिरिराजजी तथा पं० सुरेशचंद्रजीनी मदद लीधी छे. भाई गिरिराज दिल्ही प्रांतना छे भने उर्दू सारी पेठे जाणे ठे, ए आ फामने माटेनी तेमनी योग्यता बताववा पूरतुं छे. पं० सुरेशचंद्रजी युक्त प्रांतना वतनी छे अने धृदावन भयोध्या वगेरे विभागोनी हिंदीथी परिचित छे. मा बेज गाईओए मळीने, हिंदी-हिंदुस्तानीनी व्याख्यानी दृष्टिए शब्द-पसंदगी करवामां कीमती मदद करी छे. तेथी ज भा कोश- काम संतोषप्रद ने सहेलु तथा झट बनी शक्युं छे.
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