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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य वैयाकरण भी ऊँचे प्रकार के थे। उदयचंद महावैयाकरण थे। वर्षमानगणि और यशश्चन्द्रगणि अच्छे कवि और विद्वान थे। और 'महेन्द्रमुनि' शब्दशास्त्र के पंडित थे । मीठे वृक्ष के फलों में भी कोई कडवा फल निकल जाता है । इसी तरह हेमचन्द्र का एक शिष्याभास बालचन्द्र' विद्वान् होते हुए भी गुरुद्रोही हुआ था। झूठे यश के मोह में आकर वह 'अजयपाल' के साथ मिला था, जिससे बहुत हानि हुई है । इन सुशिष्यों में हेमचन्द्र के व्यक्तित्व विद्वत्ता की प्रभा यथायोग्य प्रतिविम्बिन हुई थी । इन्होंने भी गुरु के कार्य की पूर्ति करने में और साहित्य की शोभा बढाने में अच्छा सहयोग दिया है । आचार्य हेमचन्द्र का साहित्य हेमचन्द्राचार्य के जीवन में प्रवेक्ति जीवन मे भी अधिक महत्व की और विद्वञ्चमत्कारिणी बात हो तो उनका समृद्ध गंभीर और आवश्यक साहित्य है। इनके पहले गुजरात के साहित्यभंडार अपूर्ण थे । जैन साहित्य में भी कई विषयों के ग्रन्थों की न्यूनता नजर आती थी। इन सब बातों को ध्यान में रखकर हेमचन्द्र ने विविध साहित्य रचना में अपनी लेखनो बडे वेग से चलाई । लोक परंपरा से कहा जाता है कि 'हेमचन्द्र ने साढे २. देखो प्रभावकचरित्र में हेमचन्द्र का चरित्र । For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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