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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 5 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य निःस्पृहवृत्ति और गरीबों का उद्धार । एक गरीब ने मोटी खद्दर हेमचन्द्र को दान में दी । राज्य के गुरु होते हुए भी मुलायम कपडे के बदले इस जाडी खद्दर का ओढ कर व्याख्यान देने आचार्य बैठे । राजा ने कहा - 'महाराज ! हम जैसे धनाढ्य राजा के आप गुरु होते हुए ऐसा रद्दी कपडा क्यों ओढते हो ? इस से हमको शरम आती है ।' आचार्य ने कहा 'राजन् ! तुमको प्रजा की स्थिति का पता नहीं है । तेरे राज्य में ऐसे लोग भी हैं जो गरीबाई से अच्छा भोजन और अच्छा कपड़ा नहीं पाते हैं। हम तो साधु भोजन मिला वैसा ही उत्तम मानते हैं इस खद्दर से शरम आती हो तो अपनी को- साधर्मिकों की गरीबाई दूर करो, आनन्द हो' । यह बात सुनकर राजा उसने गरीबों की मदद करने के वास्ते निकाली । इससे कई गरीब आशीर्वाद देने लगे । जैन साधु, लोगों को उपदेश देकर जगत् के लिए लाखों की मदद करवाते हैं, तब वे स्वयं खुल्ले सिर नंगे पाँव से सादे रहते हैं । जैसा साधुओं ने आजतक के इतिहास में राजा आदि बडे आदमियों के साथ परिचय से परोपकार जीव-दया और देश सेवा के करवाए हैं । वैसे निजी स्वार्थ की कोई परवाह नहीं की है । धर्म के नाम से देवियों के आगे पशु वध करने की प्रथा भी उस वख्त 32 For Private and Personal Use Only २४५ हैं, जैसा व परन्तु तुमको लक्ष्मी से प्रजा जिससे मेरे को चौंक उठा और अच्छी रकम
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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