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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
हेमचन्द्र का स्थान
आचार्य की महत्त्वपूर्ण उदारता से कुमारपाल वडा ही प्रसन्न हुआ | सच्चारित्र, प्रकाण्ड पाण्डित्य, समयज्ञता और उदारतादि गुणों से सिद्धराज की भक्ति हेमाचार्य पर खूब बढी हुई थी। उसके दरबार में आचार्य का स्थान बहुत ऊँचा था । विद्वद्वयं पण्डित शिवदत्त जी शर्मा लिखते हैं:
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" संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का और श्रीहर्ष के दरबार में बाणभट्ट का है, प्रायः वहीं स्थान ईसा की बारहवीं शताब्दी में चौलुक्य वंशोद्भव सुप्रसिद्ध गुर्जरनरेन्द्र शिरोमणि सिद्धराज जयसिंह के इतिहास में हेमचन्द्र का है । फिर कुमारपाल के इतिहास में तो उनका स्थान चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में विष्णुगुप्त ( चाणक्य) के सदृश ही रहा । " ( नागरी प्र० प० भाग ६ सं ४ )
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हेमचन्द्राचार्य और कुमारपाल
सिद्धराज जयसिंह का उत्तराधिकारी गूर्जर सम्राट् कुमारपाल वि० सं० १९९९ में राज्यारूढ हुआ' | सिद्धराज
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१ कुमारपाल राजा के सम्बन्ध में विषेश जिज्ञासा हो तो देखो हमारा 'महाराजा कुमारपाल चौलुक्य' निबन्ध जो भारतीय अनुशीलन ( ओझा अभिनन्दन ग्रन्थ ) में प्रकाशित हुआ है ।