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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य (चारित्र) के प्रभाव और विद्या के तेज से इनका प्रभाव चन्द्र की भाँति चारों ओर फल गया। धर्म-देश लोकपेवा की अनेक महत्त्वाकांक्षाओं का इनमें जन्म हुआ। और भी विद्वत्ता को बढाने की आकांक्षा से सोमचन्द्र ने कश्मीर, गौडदेश आदि में जाने का निश्चय किया। उनके निश्चय बल से सरस्वती देवी ने ही इन्हें गुजरात में स्था। पित होकर इच्छित वरदान दे दिया। मन्त्र सिद्धि सोमचन्द्र ने 'सिद्धचक्र' के अहे' आदि कई प्रकार के मन्त्रों की भी सिद्धि प्राप्त कर ली। उस जमाने में मन्त्र विद्या का आम्नाय बराबर विधिपूर्वक था और लोगों की श्रद्धा भी वलवती थी। आचार्यपद इनका प्रभाव यशः खूब बढ़ गया । मारवाड, गुजरात, काठियावाड, गौड आदि देशों में भ्रमण करके उपदेश द्वारा इन्होंने जगत् को नीति-धर्म का मार्ग बताया । चारों ओर से इनके गुरु को लोग कहने लगे कि सोमचन्द्र बडे ही प्रतापी, सर्वतन्त्रस्वतन्त्र, दिग्गजविद्वान और योग्य हैं, अतः इनको आचार्यपद से भूषित करना चाहिये । गुरु ने निजेच्छा और प्रेरणा से प्रेरित होकर पाटण में आकर बडे ठाठ से उत्सव पूर्वक सोमचन्द्र को आचार्यपद अर्पण किया। उस समय गुरु और पाटण की प्रजा के दय आनन्द से उच्छलते थे। For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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