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झांसी का इतिहास
करके ता० १८-५-१८५८ ई० को लक्ष्मीबाई वीराङ्गना ने अपने नश्वर देह को छोड कर अनश्वर उज्जवल यश को प्राप्त किया ।
अगरेजों ने लक्ष्मीबाई की पेन्शन बन्द करदी । गदर में वीराङ्गना लक्ष्मीबाई रानी बहुत ही बहादुरी से अंग्रेजों के साथ लडी । कइयों के गले काटे । कइयों को बेहोश कर दिया। दक्षिण की इस एकाकिनी विधवा लक्ष्मी बाई ने शिवाजी की तरह वीरता के इतिहास में अपना यश अनश्वर रखने के वास्ते अपने देह की भी परवाह न की । परन्तु छल और लडाई से काम लेकर अगरेजों ने झांसी को स्वाधीन कर लिया । सन् १८६१ ई० में झांसी को अगरेजों ने महाराज ग्वालियर के सुपुर्द किया, क्योंकि इस लड़ाई में ग्वालियर महाराजा ने अङ्गरेजों को धन जन और तन से बहुत मदद दी थी। फिर २४ बर्षों में ही यानि सन् १८८५ ई० में ग्वालियर का किला और मुरार की छावनी महाराज ग्वालियर को देकर उसके बदले १५००००० ( पद्रह लाख ) रुपया और सारा झांसी जिला अङ्गरेजों ने वापिस ले लिया।
झांसी में देखने योग्य स्थान । किला-भारत में किले का रिवाज पुराना है । राज्य के मुख्य सात अंगों में दुर्ग ( किला ) भी एक अंग होना राजकीय प्राचीन शास्त्र का विधान तक हो गया है । इससे राज्य देश और आत्मा की रक्षा होती है। ऐसी
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