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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झांसी का इतिहस मुगलों का पुण्य क्षीण हो जाने से मरहटों ने हरा कर यह पहाडी और किला स्वाधीन किया। बालाजीराव विश्वनाथ के पुत्र 'नारुशङ्कर' नामक वीर पुरुप ने अठारवीं शताब्दी के अन्त में इस झांसो को खूब बढाया व आबाद किया और प्राचीन किले में सुन्दर और मजबूत श्रीशंकर का मन्दिर और उसका किला तय्यार करवाया । उस किले का नाम 'शंकरगढ' रक्खा । नारुशंकर ने, करीब उजाड बने हुये ओरछा से वहां के लोगों को और अन्यान्य स्थानों से मनुष्यों को बुलाकर इस झांसी को और विशेषरूप से बढाया । नारूशंकर के पश्चात् “माधौ जीगोबिन्द आंतिया ने सन् १७५७ ई० में ऑतिया ताल ( सरोवर ) बनवाया। शिवराम भाऊ ने सन् १७६४ ई० में झांसी शहर के चारों ओर कोट ( चहार दोवारी) और लक्ष्मीताल बनवाया, लक्ष्मीताल में करीब दो सौ कुए हैं। इसके सिवाय लक्ष्मी मन्दिर भी इन्होंने बनवाया । यह मन्दिर भी हमने देखा। झांसी के अन्तिम महाराजा गंगाधरराव हुए जो बिना पुत्र के थे। उनके स्वर्गगामी हो जाने पर अंग्रेजों ने झांसी को खालसा करके इनका राज्य हस्तगत कर लिया और गंगाधरराव राजा की वीर पत्नी श्रीमती रानी लक्ष्मीबाई को मासिक रुपए ५,००० ( पाँच हजार ) की पैन्शन करदी, फिर सन् १८५७ ई० के ऐतिहासिक गदर में बागियों ने झांसी का राज्य श्रीमती लक्ष्मीबाई को दिया । महारानी लक्ष्मीबाई का इतिहास बहुत सुन्दर और बडा आकर्षक है । हम संक्षेप से यहां बतलाये देते हैं For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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